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भाववाच्य sentence in Hindi

pronunciation: [ bhaavevaachey ]
"भाववाच्य" meaning in English
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  • जैसे-कर्तृवाच्य भाववाच्य 1. बच्चे नहीं दौड़ते।
  • यही बात संस्कृत भाववाच्य में रखती है।
  • जैसे-कर्तृवाच्य भाववाच्य 1. बच्चे नहीं दौड़ते।
  • प्रश्न १४: नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए-
  • इसी प्रकार भाववाच्य की सभी क्रियाएँ भी भावे प्रयोग में मानी जाती है।
  • इसी प्रकार भाववाच्य की सभी क्रियाएँ भी भावे प्रयोग में मानी जाती है।
  • इसी प्रकार भाववाच्य की सभी क्रियाएँ भी भावे प्रयोग में मानी जाती है।
  • 2. कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना-(1) इसके लिए क्रिया अन्य पुरुष और एकवचन में रखनी चाहिए।
  • 2. कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना-(1) इसके लिए क्रिया अन्य पुरुष और एकवचन में रखनी चाहिए।
  • 3. भाववाच्य-क्रिया के जिस रूप से वाक्य का उद्देश्य केवल भाव (क्रिया का अर्थ) ही जाना जाए वहाँ भाववाच्य होता है।
  • श्यामा से (के द्वारा) उपन्यास लिखा जाएगा।2.कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना-(1) इसके लिए क्रिया अन्य पुरुष और एकवचन में रखनी चाहिए।
  • 3. भाववाच्य-क्रिया के जिस रूप से वाक्य का उद्देश्य केवल भाव (क्रिया का अर्थ) ही जाना जाए वहाँ भाववाच्य होता है।
  • इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं।
  • इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं।
  • इसमें मुख्यतः अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है और साथ ही प्रायः निषेधार्थक वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुक्त होते हैं।
  • 3. भाववाच्य-क्रिया के जिस रूप से वाक्य का उद्देश्य केवल भाव (क्रिया का अर्थ) ही जाना जाए वहाँ भाववाच्य होता है।
  • नपुंसक लिंग ' नहीं है, इसलिए अलिंगता या ‘ लिंग सामान्यता ' या ‘ लिंग की अविवक्षा ' अथवा भाववाच्य में हिन्दी ‘ पुलिंग ' का प्रयोग करती है।
  • (6) वाच्य-प्रकरण में जब क्रिया कर्ता या कर्म के प्रभाव से मुक्त हो जाती है (यानी भाववाच्य हो) तब हिन्दी में वह पुलिंग-एक वचन में होती है।
  • क्रियाओं में भी भेद हैं, बहिरंग भाषाएँ पुरानी संस्कृत की किसी ऐसी एक या अधिाक भाषाओं से निकली हैं, जिनकी भूतकालिक भाववाच्य क्रियाओं से सर्वनामात्मक कत्तर्ाा के अर्थ का भी बोधा होता था।
  • उसका आशय है चित्तवृत्ति का निरोध करके चित्त को वृत्तिशून्य करना और चित्तवृत्तियों के निरोध के लिए जो भी उपाय किये जा सकते हैं उनको करना. अतः `योग 'शब्द का भाववाच्य में मुख्य अर्थ हुआ साधित भगवत् मिलन, और करणवाच्य में गौण अर्थ हुआ साधित भगवान् से मिलने के लिए समस्त साधन-प्रणाली को अपनाना.` अमरकोश' में `योग 'शब्द के अनेक पर्यायवाची हैं.
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