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मुंशी सदासुखलाल sentence in Hindi

pronunciation: [ muneshi sedaasukhelaal ]
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  • 1. मुंशी सदासुखलाल 'नियाज' दिल्ली के रहनेवाले थे।
  • दिल्ली निवासी मुंशी सदासुखलाल सरल स्वभाव के हरिभक्त थे।
  • 1 मुंशी सदासुखलाल भी दिल्ली खास के थे और उर्दू
  • खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्यलेखकों में मुंशी सदासुखलाल का ऐतिहासिक महत्व है।
  • यद्यपि मुंशी सदासुखलाल ने भी अरबीफारसी के शब्दों का प्रयोग न कर
  • मुंशी सदासुखलाल की भाषा शिष्ट होते हुए भी पंडिताऊपन लिए हुए थी।
  • हिन्दी का पूरा पूरा आभास मुंशी सदासुखलाल और सदल मिश्र की भाषा में ही
  • इनमें से दो गद्यलेखकों लल्लूलाल और सदल मिश्र ने फोर्ट विलियम कालेज में रहकर कार्य किया और मुंशी सदासुखलाल तथा सैयद इंशाउल्ला खाँ ने स्वतंत्र रूप से गद्यरचना की।
  • मुंशी सदासुखलाल के संपादन में आगरा से बुद्धि प्रकाश नामक यह पत्र पत्रकारिता के दृष्टि से ही नहीं वरन भाषा व शैली की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है ।
  • मुंशी सदासुखलाल के संपादन में आगरा से बुद्धि प्रकाश नामक यह पत्र पत्रकारिता के दृष्टि से ही नहीं वरन भाषा व शैली की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है ।
  • साधारणत: लल्लू जी लाल, सदल मिश्र, इंशाअल्ला खाँ तथा मुंशी सदासुखलाल खड़ी बोली गद्य के प्रतिष्ठापक कहे जाते हैं परंतु इनमें से किसी को भी इसकी परंपरा को प्रतिष्ठित करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है।
  • साधारणत: लल्लू जी लाल, सदल मिश्र, इंशाअल्ला खाँ तथा मुंशी सदासुखलाल खड़ी बोली गद्य के प्रतिष्ठापक कहे जाते हैं परंतु इनमें से किसी को भी इसकी परंपरा को प्रतिष्ठित करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है।
  • बरेली वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का राधेश्यामी रामायण और उनके नाटक, मुंशी सदासुखलाल का सुखसागर, सबलसिंह चौहान का महाभारत और गीता प्रेस, गोरखपुर की पत्रिका कल् याण के नामोल् लेख के बिना बात अधूरी होगी।
  • उर्दू के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुंशी सदासुखलाल ने तब खेद प्रकट करते हुए कहा था-‘रस्मौ रिवाज भाखा का दुनिया से उठ गया ' उसी जमाने के प्रसिद्ध शायर इंशाअल्ला खॉं अपनी रचना ‘रानी केतकी की कहानी' में लिखते हैं कि वे ऐसी भाषा में लिखना चाहते हैं जिसमें-'हिंदवीपन भी न निकले और भाखापन भी न हो।‘
  • फोर्ट विलियम कॉलेज कॉम्प्लैक्स (1828) की दुर्लभ तस्वीर कहा ये जाता है कि इस कॉलेज ने पहले-पहल हिन्दी खड़ी बोली में गद्य-रचना उपलब्ध करवाई मगर सच तो ये है कि इससे पहले दो प्रमुख रचनाऍं लिखी जा चुकी थी-मुंशी सदासुखलाल ‘नियाज़'-ज्ञानोपदेश वाली पुस्तक, इंशाअल्ला खॉं-‘रानी केतकी की कहानी' आपको ध्यान होगा कि 1800 ईस्वी से पहले हिन्दी और उर्दू-दोनों में पद्य साहित्य ही लिखा जाता था।

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