21. कबन्ध की प्रार्थना सुन कर राम बोले , “हे राक्षसराज! मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा।22. राम का प्रश्न सुन कर कबन्ध बोला , “हे रघुनन्दन! रावण बड़ा बलवान और शक्तिशाली नरेश है। 23. कबन्ध ने शाप मुक्त होने पर श्रीरामचन्द्र जी से कहा ' आप सुग्रीव से मिलिये ' ।24. कुछ ही दूर जाने पर उन्होंने गज के आकार वाले बिना गर्दन के कबन्ध ( धड़मात्र) राक्षस को देखा। 25. कुछ ही दूर जाने पर उन्होंने गज के आकार वाले बिना गर्दन के कबन्ध ( धड़मात्र ) राक्षस को देखा। 26. तदन्तर दोनों भाई कबन्ध के बताये अनुसार सुग्रीव से मिलने के उद्देश्य से पम्पा नामक पुष्करिणी के पश्चिम तट पर पहुँचे। 27. तदन्तर दोनों भाई कबन्ध के बताये अनुसार सुग्रीव से मिलने के उद्देश्य से पम्पा नामक पुष्करिणी के पश्चिम तट पर पहुँचे। 28. फिर दोनों भाइयों का सामना कबन्ध नामक राक्षस से हुआ , जो सिर्फ धड़ ही था और जिसका मुंह उसके पेट में था। 29. सर्ग 73 के श्लोक 26 में दिव्य शरीरधारी कबन्ध ने शबरी को श्रमणी कहा है- श्रमणी शबरी नाम ( अरण्यकांड , 73.26 ) । 30. तब कबन्ध ने श्रीराम को मतंग ऋषि के आश्रम का रास्ता बताया और राक्षस योनि से मुक्त होकर गन्धर्व रूप में परमधाम पधार गया।