31. भावना जितनी अपावन थी सब हुई विसर्जित , अब सुखद संभावना को रिक्त है मन।। 32. उसे अपावन किये हुए हैं भिन्न-भिन्न जलचर , मीन-मकर , नक्र-झख , शम्बूक-शैवाल आदि । 33. भावना जितनी अपावन थी सब हुई विसर्जित , अब सुखद संभावना को रिक्त है मन।। 34. ऋग्वेद में ‘ पणि ' अर्थात् कंजूस को अपावन मनुष्य के रूप में देखा गया है । 35. ये कामना के जलचर इस नदी के जल को अपावन , मलिन और अशुद्ध कर रहे हैं । 36. अहिल्या राम से कहती है : - मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई। 37. किन्तु इन राष्ट्रों के किसी भी समाज ने कहीं भी नारी को अपावन या त्याज्य नहीं माना। 38. ये कामना के जलचर इस नदी के जल को अपावन , मलिन और अशुद्ध कर रहे हैं । 39. अश्वमेध अपावन होगा , इसकी गंध ब्राघ्मणों को लग चुकी थी और वे जनमेजय का पराभव देखने अधिक से 40. ईश्वरीय जग भिन्न नहीं है इस गोचर जगती से ; इसी अपावन में अदृश्य वह पावन सना हुआ है