31. वृन्तों एवं फलकों के मिलन स्थलों से दोनों ओर दो प्रकार के सन्धायी प्रवर्ध निकले होते हैं : - 32. पार्श्वतन्तु ( Dendrite ) - पार्श्वतन्तु ( डैण्ड्राइट ) सांवेदनिक तथा अभिवाही प्रवर्ध ( afferent process ) होते हैं। 33. महाशिरा विदार ओर निर्वाहिका यकृत के मध्य से होता हुआ दक्षिण खंड से जुडा रहता है , पुच्छिल प्रवर्ध ( 34. निम्न सन्धायी प्रवर्ध - ये भी संख्या में दो होते हैं और ये नीचे की ओर निकले होते हैं। 35. उच्च सन्धायी प्रवर्ध - ये छोटे और संख्या में दो होते हैं और ऊपर की ओर निकले होते हैं। 36. यह दूसरी ओर के फलक से जुड़कर तन्त्रिकीय चाप का पश्च भाग बनाता है , जिसे कंटिकीय प्रवर्ध कहते हैं। 37. कोशिका में एक तरफ या चारों तरफ अनेक प्रवर्ध निकलकर मातृ कोशिका से अलग होकर स्वतंत्र रूप से प्रवर्धन ( 38. कोराकोक्लैविक्यूलक जोड़ ( Coracoclavicular joint ) - यह क्लैविकल एवं स्कैपुला के कोराकॉइड प्रवर्ध के बीच का तन्तुमय जोड़ है। 39. स्टाइलॉइड प्रवर्ध तन्तु उपास्थिमय डिस्क से जुड़ा रहता है , जो अल्ना को कलाई ( Carpus ) से अलग रखता है। 40. फ्रंटल अस्थि के आर्बिटल प्रवर्ध के ऊपर स्थित त्वचा पर तिरछेपन के साथ उगे छोटे , बालों को भौंहे कहा जाता है।