अन्तर ही नहीं कर पाया कोई कि कौन-सा चाँद है और कौन-सा सूरज ? दोनों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से मन-मस्तिष्क के तरल-तन्त्रिका-तत्वों के सरिता-सागर में इतना बड़ा , इतना विशाल ज्वार आया ... , आनन्दातिरेक छाया ... , मन मस्ताया ... , कुण्डलिनी जाग उठी .... सह्स्र-दल-कमल खिलने लगा ... ... ... बस ... शब्दों में कैसे ? ... आप स्वयं अनुभव की परिकल्पना कर सकते हैं ...
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दरिया ही बहा दिया उसकी उदारता से अभिभूत हो गयी हूँ और कुछ भयभीत भी हो गयी हूँ . ....क्या इतना सुख सँभाल भी पाऊँगी ? आनन्दातिरेक से पागल तो नहीं हो जाऊँगी ? मन के पंख नहीं होते पर फिर भी मन उड़ जाता है व्याकुल पंखों को फैलाकर नील गगन में जाता है कभी दिखाता सुन्दर सपने उर उम्मीद जगाता है घोर निशा के तिमिरांचल में सूर्य किरण बिखराता है ।
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दरिया ही बहा दिया उसकी उदारता से अभिभूत हो गयी हूँ और कुछ भयभीत भी हो गयी हूँ . ....क्या इतना सुख सँभाल भी पाऊँगी ? आनन्दातिरेक से पागल तो नहीं हो जाऊँगी ? मन के पंख नहीं होते पर फिर भी मन उड़ जाता है व्याकुल पंखों को फैलाकर नील गगन में जाता है कभी दिखाता सुन्दर सपने उर उम्मीद जगाता है घोर निशा के तिमिरांचल में सूर्य किरण बिखराता है ।
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लेकिन मुझे सचमुच याद नहीं रहा अमृता जी का जन्म दिन ! चाँदनी भर लाएगी तेरे-मेरे नाम का जाम…… आज की रात फाड़ेंगे हम अपनी-अपनी उम्र का इक और पन्ना ………!! …लेकिन आपको पढ़ने वाले या तो अमृता प्रीतम जी की याद में बड़ी बेकसी - बेक़रारी से भर जाएंगे , या फिर एक रूहानी सब्रो - शुक्र क्रे एहसास के साथ वज्द ( आत्म-विस्मृति के साथ आनन्दातिरेक ) के हवाले हो जाएंगे ।
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गुरुजी बहुत जल्द नाराज होते थे . खुश भी.जब वे खुश या नाराज होते तो इजहार भी करते.तरीका यह कि तब वे अपनी धोती समेट के नितम्ब खुजलाने लगते.ऐसे ही किसी मौके पर आनन्दातिरेक में वे नितम्ब-घर्षण कर रहे थे.अचानक उनको अपने हाथ के अलावा कुछ खुरदुरा गीलापन भी महसूस हुआ .देखा तो पाया कि एक भैंस का बच्चा उनके नितम्ब-घर्षण में अपनी जीभ का योगदान कर रहा था.वे गुस्से में फिर नितम्ब-घर्षण में जुट गये.
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एक पल माँगा थाउसने उदार होकरअपार भंडार दे दियाप्रसन्नता की बस एकलहर माँगी थी . .....उसने पूरा पारावार दे दियातृप्ति का,सुख काबसएक कण माँगा थाउसने उल्लास का....दरिया ही बहा दियाउसकी उदारता सेअभिभूत हो गयी हूँऔर कुछ भयभीत भीहो गयी हूँ.....क्या इतना सुखसँभाल भी पाऊँगी ?आनन्दातिरेक सेपागल तो नहीं हो जाऊँगी ?मन के पंख नहीं होते परफिर भी मन उड़ जाता हैव्याकुल पंखों को फैलाकरनील गगन में जाता हैकभी दिखाता सुन्दर सपनेउर उम्मीद जगाता हैघोर निशा के तिमिरांचल मेंसूर्य किरण बिखराता है ।
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कू करती है आम्र कुंज से उसकी मीठी बोल उड़कर सिवान के आरपार तक नगर सीमा के द्वार तक हृदय-आनन्द रस में भिंगोती है कोयल किसी डाल पर बैठी प्रातःकाल के पूर्वी क्षितिज पर रंगोली खेलती सोनाली आभा-रंगी किरणों के रंगोत्सव देखकर अपनी कूक के स्वर बदल लेती है आनन्दातिरेक में मीठे गान सुनाती है कोकिला , कोयल , कलपाखी , इतनी काली होते हुए भी अपनी आवाज से दिशाओं में मधुरस घोलती है कितना मधुर मीठा मृदु मोहक बोलती है हमारी आत्मा के खालीपन को आनन्द-रस से भरती है कोकिला अलख सबेरे अपना मधुरस-तान-गान छेड़ती है।
आनन्दातिरेक sentences in Hindi. What are the example sentences for आनन्दातिरेक? आनन्दातिरेक English meaning, translation, pronunciation, synonyms and example sentences are provided by Hindlish.com.