1. अत : ब्राह्मण-भाग का वेदत्व सर्वथा अव्याहत है। 2. इसमें अक्लिष्ट तथा अव्याहत इच्छा भी है। 3. वराहपुराणकहता है कि मौनव्रतका पालन करने से अव्याहत आज्ञाशक्तिप्राप्त होती है। 4. इन विषयों का अध्ययन , अध्यापन तथा लेखन आपका अव्याहत गति से चलता रहा। 5. कि वे कहाँ तक वास्तविक , संभव या अव्याहत हैं बल्कि इस दृष्टि से ऑंका जाता 6. वाणिज्य , व्यवसाय हजारों की संख्या में सैनिकों एवं कूटनीतिज्ञों का आवागमन अव्याहत गति से जारी रहा। 7. इसलिए अर्यीकृत ब्राह्मणवादी वर्ण-वित्त संरचित जड़ समाज के पास ही , अव्याहत रूप से ध्वनित हुआ जातिहीन मुक्त वित्त ; 8. इसलिए अर्यीकृत ब्राह्मणवादी वर्ण-वित्त संरचित जड़ समाज के पास ही , अव्याहत रूप से ध्वनित हुआ जातिहीन मुक्त वित्त ; 9. इसमें भगवान शिव आलम्बन विभाव , उनका अव्याहत ( अक्षत या शाश्वत ) ऐश्वर्य उद्दीपन विभाव , स्तवन आदि अनुभाव , धृति , माहात्म्य आदि संचारिभाव हैं- 10. ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि - ” साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।