11. अकलंक ने स्मृति को परोक्ष माना है, क्योंकि इसमें अविसंवाद देखा जाता है।12. इसी से कभी-कभी जैन न्याय को ' अकलंक न्याय ' भी कहा जाता है। 13. 5000 फुट से भी ऊंची चोटियां अकलंक शुभ्रता का हिम मुकुट पहने खड़ी हैं। 14. समारोह में अकलंक गर्ल्स कॉलेज के अविनाश जैन और एस. के.जैन ने भी मंचीय बातचीत कही। 15. अकलंक (720-780 ई), जैन न्यायशास्त्र के अनेक मौलिक ग्रंथों के लेखक आचार्य।16. आचार्य अकलंक एवं आचार्य विद्यान्दसूरिजी ने भाष्य वं वृत्ति से इस स्तुति को सुशोभित किया है। 17. अकलंक ने प्रमाण प्रतिष्ठा करते हुए निम्नलिखित सिद्धान्त प्रस्तुत किया है-प्रमाण को अविसंवादी होना चाहिए।18. अकलंक के पिता का नाम पुरुषोत्तम था, जो मान्यखेट नगरी के राजा शुभतुंग के मंत्री थे।19. यहाँ अकलंक ने धर्मकीर्ति के आक्षेप का शालीन उपहासपूर्वक, किन्तु चुभने वाला करारा उत्तर दिया है। 20. किन्तु अकलंक ने कहा है कि तर्क को प्रमाण मानना ही होगा, क्योंकि यह व्याप्तिग्राही है।