५ ००० इशा पूर्व गीता आत्मा को ब्यक्त करनें के सम्बन्ध में कहा-आत्मा सर्व ब्यापी, अच्छेद्य, अदाह्य, अक्लेद्य, अशोष्य तथा नित्य है [गीता सूत् र..
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भावार्थ: क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और निःसंदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है॥ 24 ॥
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यह आत्मा अच्छेद्य है-इसे छेदा नहीं जा सकता, यह अदाह्य है-इसे जलाया नहीं जा सकता, यह अक्लेद्य इसे गीला नहीं किया जा सकता, आकाश इसे अपने में समाहित नहीं कर सकता।
14.
शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती, क्योंकि आत्मा अछेद्य, अदाह्य, अक्लेद्य और अशोष्य है।
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* 2. 24 > अच्छेद्य, अदाह्य, अक्लेद्द्य, अशोष्य, नित्य, सर्वब्यापी, अचल, स्थाणु, सनातन है, आत्मा (स्थाणु का अर्थ है एटम जैसा) * 2.25 > अब्यक्त, अचिन्त्य, निर्विकार रूप में इसे जानते हुए भी शोक करना उचित नहीं ।
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