वि. स. २०५० सुजानगढ़ मर्यादा महोत्सव के ऐतिहासिक समारोह के मध्य आचार्यश्री तुलसी ने अपनी सक्षम उपस्थिति में अपने आचार्यपद का विर्सजन कर युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया।
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मेरे विचार में कण्णश्शन् के नाम से विख्यात इस राम कवि को उपर्युक्त पदवी प्रदान करने में एषुत्तच्छन को हर्ष ही होगा, क्योंकि एषुत्तच्छन के आचार्यपद के भी वे पात्र हैं।
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* आचार्यपद से ब्राह्मण का अपने पुत्र को अध्याय तथा याज्ञिक क्रियाओं में निपुण करना एक विशेष कार्य था ref > (शतपथ ब्राह्मण 1,6,2,4) / ref > ।
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आचार्य श्री तुलसी ने १ ८ फरवरी १ ९९ ४ को सुजानगढ मे अपने आचार्यपद का विसर्जन कर युवाचार्य महाप्रज्ञजी को आचार्य पदप्रदान किया, इस प्रकार मुनि नथमलजी बिन्दु से सिन्धु, और शिष्य से सबके सरताज बन गऐ।
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अध्यात्म, धर्म, राजनीति, रणकौशल, विज्ञान, कला,संगीत, नेतृत्व, सेवा, पारिवारिक जीवन, समाजसुधारकहीं भी देखिये, वे सर्वत्र सदा सबके लिये आदर्श, दिव्य आशा का निश्चित संदेश लिये, सफलता, कुशलता और अनुभूति से पूर्ण आचार्यपद पर प्रतिष्ठित हैं और स्वयं पथ प्रदर्शक बनकरलस्यं ही सुदृढ नौका के केवट बनकर सबको सब प्रकार की असुविधाआें और बन्धनों के अगाध समुद्र से सहज पार कर देने के लिये नित्य प्रस्तुत हैं।
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