11. आन्वीक्षिकी विद्याओं के जितने मुख्य विषय हैं, कल्पना और मनोवेग के जितने12. न्याय का दूसरा नाम है आन्वीक्षिकी अर्थात अन्वीक्षा के द्वारा प्रवर्तित होने वाली विद्या। 13. गौतम के पहले जो न्याय दर्शन प्रवृत्त हुआ था, उसे आन्वीक्षिकी कहा जाता है। 14. निश्चय ही आन्वीक्षिकी के सर्वाधिक महत्व को सर्वप्रथम कौटिल्य ने ही प्रतिपादित किया है। 15. इसमें राजा अलर्क और प्रहलाद को आन्वीक्षिकी यानी ब्रह्म विध्या का उपदेश दिया । 16. गौतम के पहले जो न्याय दर्शन प्रवृत्त हुआ था, उसे आन्वीक्षिकी कहा जाता है। 17. इस प्रकार आत्मविद्या अर्थात् दर्शन को अब आन्वीक्षिकी अर्थात् अनुसंधानरूपी विज्ञान का सहारा मिल गया। 18. अत: वेद विद्या की तरह इस आन्वीक्षिकी को भी विश्वस्रष्टा का ही अनुग्रहदान मानना चाहिए। 19. आन्वीक्षिकी का अर्थ है-प्रत्यक्षदृष्ट तथा शास्त्रश्रुत विषयों के तात्त्विक रूप को अवगत करानेवाली विद्या।20. वे सभी आचार्य आन्वीक्षिकी (दर्शनशास्त्र) को कोई स्वतंत्र विद्या या शास्त्र नहीं मानते थे।