11. मध्य भाग उपोद्घात पाद के रूप में है जबकि उत्तर भाग उपसंहार पाद प्रस्तुत करता है। 12. 1932 में इस महानाटक में उपोद्घात के रूप में ‘ विश्वरथ ' नाम से एक उपन्यास लिखा। 13. आचार्य सायण ने कृष्ण यजुर्वेद की तैत्ति. सं. के उपोद्घात में स्वयमेव लिखा है- 14. हम पहले दिखला चुके हैं कि यह अध्याय बहुतपीछे के समय का है और वास्तव में उपोद्घात है. 15. इसीलिए धातुवृत्ति, भी, “माधवीया” कहलाने पर भी, सायण की ही नि:संदिग्ध रचना है जिसका उल्लेख उन्होंने ग्रंथ के उपोद्घात में स्पष्टत: 16. इसीलिए धातुवृत्ति, भी, “माधवीया” कहलाने पर भी, सायण की ही नि:संदिग्ध रचना है जिसका उल्लेख उन्होंने ग्रंथ के उपोद्घात में स्पष्टत: किया है- 17. रविचंद्र ने “अमरूशतकम्” की अपनी टीका के उपोद्घात में आद्य शंकराचार्य को अमरूक से अभिझ व्यक्ति माना है, परंतु यह किंवदंती नितांत निराधार है। 18. यह माधवीया धातुवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध होने पर भी सायण की ही नि: संदिग्ध रचना है-इसका परिचय ग्रंथ के उपोद्घात से ही स्पष्टत: 19. यह माधवीया धातुवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध होने पर भी सायण की ही नि: संदिग्ध रचना है-इसका परिचय ग्रंथ के उपोद्घात से ही स्पष्टत: मिलता है। 20. यह माधवीया धातुवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध होने पर भी सायण की ही नि: संदिग्ध रचना है-इसका परिचय ग्रंथ के उपोद्घात से ही स्पष्टत: मिलता है।