11. कटि-स्नान करने से दूषित द्रव्य पहले आंत में एकत्रित होते हैं और फिर चारों ओर फैलते हैं।12. यदि रोगी को बुखार आदि हो तो पहले दिन से ही ठंडे पानी का कटि-स्नान करना चाहिए। 13. 2-3 दिन तक स्नान का अभ्यास होने के बाद ही हल्के ठंडे पानी से कटि-स्नान करना चाहिए। 14. इस स्नान में केवल कमर को ही पानी में भिगोकर स्नान किया जाता है, इसलिए इसे कटि-स्नान कहते हैं। 15. कटि-स्नान केवल नाभि के निचले भाग पर ही लिया जाता है परन्तु इसका प्रभाव शरीर के समस्त स्नायुमण्डल पर पड़ता है।16. प्रतिदिन नियमित समय पर ही कटि-स्नान करें और रोग में आने वाली कमी या अधिकता के अनुसार इसके समय को जारी रखें। 17. कटि-स्नान के प्रयोग के समय प्राकृतिक आहार पर रहना और खान-पान एवं रहन-सहन संबन्धी अन्य प्राकृतिक नियमों का पालन करना लाभकारी होता है।18. शरीर के विभिन्न अंगों से निकलकर आए दूषित तत्वों को बाहर निकालने के लिए घर्षण कटि-स्नान से अच्छा अन्य कोई स्नान नहीं है। 19. घर्षण कटि-स्नान के लिए नाभि के नीचे का भाग इसलिए चुना गया क्योंकि पेट के इसी भाग में भोजन का पाचनतंत्र रहता है। 20. उपवास के दिनों में यह कटि-स्नान शरीर के दूषित तत्वों को अधिक तेजी से बाहर निकालता है और इससे अधिक लाभ मिलता है।