244 पृष्ठों की “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” में कथन शैली हल्की फुल्की बातचीत की है पर कुछ अध्याय संजीदगी भी लिये हैं (यह पुस्तकांश तो आप निरंतर पर पढ़ भी चुके हैं)।
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244 पृष्ठों की “हू लेट द ब्लॉग्स आउट” में कथन शैली हल्की फुल्की बातचीत की है पर कुछ अध्याय संजीदगी भी लिये हैं (यह पुस्तकांश तो आप निरंतर पर पढ़ भी चुके हैं)।
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यह रामायण का बहुत दिलचस्प संस्करण है और अपने सबल्टर्न पाठ, जिसकी कथन शैली के केंद्र में सीता है, के साथ एक मनोरम और आकर्षक कथा संसार की रचना करता है.
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244 पृष्ठों की “ हू लेट द ब्लॉग्स आउट ” में कथन शैली हल्की फुल्की बातचीत की है पर कुछ अध्याय संजीदगी भी लिये हैं (यह पुस्तकांश तो आप निरंतर पर पढ़ भी चुके हैं) ।
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[या आप मौखिकता और उपन्यास के विश्लेषण का विस्तार इस महाद्वीप के पार भी, सेनापति के उपन्यास और अमोस तुतुओला कि उपन्यास ' द पाम-वाइन-ड्रिंकार्ड ', जो कि योरुबा लोककथाओं पर आधारित है, की कथन शैली के तुलनात्मक अध्यन के जरिये कर सकते है.]
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जिस विचार को रचना का रूप मिल चुका हो, जिस विचार को अभिव्यक्ति मिल चुकी हो, उसे अगर किसी कारण कहने की ज़रूरत महसूस भी हो रही हो, तो कम से कम कथन शैली में ही कोई नवीनता, कोई विशिष्टता हो, वरना पाठक और श्रोता को बिना वजह तकलीफ़ क्यों दी जा ए.
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गौरतलब है कि भोपाल, नई दिल् ली, मुम् बई, बैंगलूर, कोलकाता सहित विदेशों में रहने वाले कई भारतीय कवि लेखक तथा पत्रकारों नें डॉ. चुद्रकुमार जैन की मर्मस् पर्शी लेखनी, कथन शैली के अलावा उनकी संक्षिप् त सारगर्भित और व् यंजना गुण युक् त टिप् पणियों को मील का पत् थर करार दिया है ।
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यदि हिंदी और उर्दू में कृत्रिम दरारें नहीं डाली गई होतीं, तो इस मिली-जुली भाषा ने मुग़लों के अंतिम समय में जो आश्चर्यजनक कथन शैली विकसित कर ली थी, वह अनायास ही हिंदी को प्राप्त हो गई होती और उसे कई दशक बिताकर नए सिरे से अपनी अभिव्यंजना शक्ति विकसित नहीं करनी पड़ती और हिंदी आज जहाँ पहुँच सकी है, उससे कई दशक आगे की मंजिल प्राप्त कर गई होती।
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यदि हिंदी और उर्दू में कृत्रिम दरारें नहीं डाली गई होतीं, तो इस मिली-जुली भाषा ने मुग़लों के अंतिम समय में जो आश्चर्यजनक कथन शैली विकसित कर ली थी, वह अनायास ही हिंदी को प्राप्त हो गई होती और उसे कई दशक बिताकर नए सिरे से अपनी अभिव्यंजना शक्ति विकसित नहीं करनी पड़ती और हिंदी आज जहाँ पहुँच सकी है, उससे कई दशक आगे की मंजिल प्राप्त कर गई होती।
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सेनापति के उपन्यास ‘ छह माड़ आठ गुंठ ' [और साथ ही साथ १ ६ वीं शताब्दी में बलराम दास द्वारा एक नारीवादी रचना ‘ लक्ष्मी-पुराण ' जिसका आपने विस्तृत विश्लेषण किया है के बारे में भी तर्क करना चाहेंगे] में आधुनिकता ‘ अकथात्मक कथन शैली ' में है, और ख़ास करके सहयोगी कार्यकर्त्ता की भूमिका निभाते हुए ये ‘ पाठ ' पाठकों पर वर्तमान सामाजिक ढांचे और राजनीतिक शक्ति की आलोचना के दायित्व को थोपते है.
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