11. वेदविरोधी होने के कारण नास्तिक संप्रदायों में चार्वाक मत का भी नाम लिया जाता है। 12. जीव एवं चैतन्य की अवधारणा-चार्वाक चार्वाक मत में कोई जीव शरीर से भिन्न नहीं है। 13. सर्व दर्शन संग्रह के पहले अध्याय में चार्वाक मत के सिद्धांतों का सार मिलता है । 14. एतावता इन बाल्यावस्था के संस्कारों के उद्बोधन से चार्वाक मत में स्मरण बिना किसी बाधा के हो जाता है। 15. भारत में अनीश्वरवाद की शुरुआत जैन और चार्वाक मत से मानी गई है और ईश्वरवाद की शुरुआत वेद से। 16. एतावता इन बाल्यावस्था के संस्कारों के उद्बोधन से चार्वाक मत में स्मरण बिना किसी बाधा के हो जाता है। 17. जड़भूतों के अंतर्निहित स्वभाव से ही जगत की उत्पत्ति होती है, इसलिए चार्वाक मत ‘ स्वभाववाद ' कहलाता है। 18. मायामोह ने अपुरों को जो उपदेश किया वह सर्वदर्शनसंग्रह में दिए हुए चार्वाक मत के श्लोकों से बिलकुल मिलता है। 19. मायामोह ने अपुरों को जो उपदेश किया वह सर्वदर्शनसंग्रह में दिए हुए चार्वाक मत के श्लोकों से बिलकुल मिलता है। 20. ' ' ' जीव एवं चैतन्य की अवधारणा '' ' * चार्वाक मत में कोई जीव शरीर से भिन्न नहीं है।