11. दैवत्व की अवधारणा के प्रति घातक हॊने के कारण यह ईश निंदा है ।12. तुम दैवत्व के अंश हो, उसी का विकास तुम्हारा सच्चा विकास है । 13. उन्होने दैवत्व के धरा पर अवतार लेकर आने के कारणों पर प्रकाश डाला है। 14. और मंत्र का अर्थ हैं मेरे मन तथा बुद्धि में दैवत्व का उदय होये। 15. वह उनमें अवतारी दैवत्व की कल्पना करता है और उन्हें ब्रह्मविद्या का ज्योतिस्तम्भ मानकर उनकी प्रशस्ति गाता है। 16. क्या दैवत्व के अवतार के लिए यह घोषित करना उपयुक्त होगा कि वे सभी से श्रेष्ट हैं? 17. दक्षिण-दाहने हाथ से कर्म प्रधान जीवन का संकल्प हमारे भीतर इन्द्र का दैवत्व स्थापित करता है. 18. लोग उनके समीप आयें और उनके दैवत्व से प्रभावित होकर अप्ना दैवत्व भी उज्जागर करने को अनुप्रारित हो सकें। 19. लोग उनके समीप आयें और उनके दैवत्व से प्रभावित होकर अप्ना दैवत्व भी उज्जागर करने को अनुप्रारित हो सकें। 20. सम्पूर्ण चराचर जगत अर्थात् पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, आग, वायु, जल, वनस्पति और जीव-जंतु सब में दैवत्व की धारा प्रवाहित है।