11. अत: इलेक्ट्रान ऋणाग्र से निकलकर अपनी संपूर्ण ऊर्जा से धनाग्र से सीधे टकराते हैं। 12. यदि कण धनाग्र की ओर बढ़ते हैं तो उनपर ऋणात्मक विद्युत् आवेश रहता है। 13. नई विधि के अनुसार द्रवित डाइफ्लोराइड का लौह के बरतन में कार्बन धनाग्र ( 14. बाह्य परिपथ में इलेक्ट्रान धनाग्र से विभवस्रोत (वोल्टेज सोर्स) से होकर ऋणाग्र में जाते हैं। 15. घटता जाता है और धनाग्र से संघात होते समय केवल स्वल्प ऊर्जा शेष रहती है) । 16. इसको दूर करने के लिए एक तृतीय ग्रिड, आवरण ग्रिड तथा धनाग्र के बीच में, लगा देते हैं। 17. इसमें तीन सिरे होये हैं जिन्हें धनाग्र (एनोड), ऋणाग्र (कैथोड) और गेट के नाम से जाना जाता है। 18. नई विधि के अनुसार द्रवित डाइफ्लोराइड का लौह के बरतन में कार्बन धनाग्र (anode) द्वारा विद्युद्विच्छेदन करते हैं। 19. इस ग्रिड की उपस्थिति में धनाग्र परिपथ तथा ग्रिड परिपथ युग्मित नहीं होते और दोलन नहीं उत्पन्न होता । 20. ये धनाग्र एक संवाहक दंड (बस बार) से लटकते रहते हैं और इच्छानुसार ऊपर नीचे किए जा सकते हैं।