विद्वान अवर न्यायालय का यह निश्कर्श भी विधि विरूद्ध है कि निगरानीकर्तागण ने जो आपत्तियां की हैं, वे थर्ड पार्टी ही कर सकती हैं, बल्कि निश्पादन में अंकित सम्पत्ति प्राप्त करने के बारे में निर्णीत ऋणी को आपत्ति करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है और निर्णीत ऋणी भी उसके बारे में आपत्ति करके अपनी सुरक्षा कर सकता है।
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जब सतपाल आदि निर्णीत ऋणी के बिहाफ पर कब्जे में थे तो उस स्थिति में निगरानीकर्तागण का यह तर्क, कि उनको प्रकीर्ण वाद संख्या 84/2008 का कोई ज्ञान नहीं था, सही प्रतीत नहीं होता है बल्कि समस्त साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि निर्णीत ऋणी किसी न किसी प्रकार से डिक्री के निश्पादन को बाधित करना चाहते हैं।
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जब सतपाल आदि निर्णीत ऋणी के बिहाफ पर कब्जे में थे तो उस स्थिति में निगरानीकर्तागण का यह तर्क, कि उनको प्रकीर्ण वाद संख्या 84/2008 का कोई ज्ञान नहीं था, सही प्रतीत नहीं होता है बल्कि समस्त साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि निर्णीत ऋणी किसी न किसी प्रकार से डिक्री के निश्पादन को बाधित करना चाहते हैं।
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चूकि यह बिन्दु डिक्रीदार एवं निर्णीत ऋणी के मध्य का नहीं है और न ही सड़क की भूमि से कोई सम्बन्ध निर्णीत ऋणी का है, अतः मेरी राय में विद्वान अवर न्यायालय के द्वारा अपने आदेष में यह विधि अनुरूप निर्धारित किया गया है कि सड़क के लिये अधिगृहीत की गयी भूमि के सम्बन्ध में यदि कोई आपत्ति करने का अधिकार है तो सरकार को है, न कि निगरानीकर्ता को।
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चूकि यह बिन्दु डिक्रीदार एवं निर्णीत ऋणी के मध्य का नहीं है और न ही सड़क की भूमि से कोई सम्बन्ध निर्णीत ऋणी का है, अतः मेरी राय में विद्वान अवर न्यायालय के द्वारा अपने आदेष में यह विधि अनुरूप निर्धारित किया गया है कि सड़क के लिये अधिगृहीत की गयी भूमि के सम्बन्ध में यदि कोई आपत्ति करने का अधिकार है तो सरकार को है, न कि निगरानीकर्ता को।
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विद्वान अधिवक्ता निगरानीकर्तागण के द्वारा अपनी आपत्ति अन्तर्गत धारा 47 सी. पी. सी. के पैरा नम्बर-5 में यह कहा गया है कि डिक्रीदार निर्णीत ऋणी की भूमि का कब्जा लेना चाहता है, परन्तु पैरा नम्बर-4 में कहा गया है कि निर्णीत ऋणी के द्वारा विवादित सम्पत्ति के दक्षिण में कुछ भूमि खरीदी गयी थी, परन्तु अपनी आपत्तियों में कहीं भी यह नहीं कहा है कि निर्णीत ऋणी की भूमि जो उसने अपनी व्यक्तिगत हैसियत से खरीद की, कितनी भूमि पर डिक्रीदार कब्जा लेना चाहता है।
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विद्वान अधिवक्ता निगरानीकर्तागण के द्वारा अपनी आपत्ति अन्तर्गत धारा 47 सी. पी. सी. के पैरा नम्बर-5 में यह कहा गया है कि डिक्रीदार निर्णीत ऋणी की भूमि का कब्जा लेना चाहता है, परन्तु पैरा नम्बर-4 में कहा गया है कि निर्णीत ऋणी के द्वारा विवादित सम्पत्ति के दक्षिण में कुछ भूमि खरीदी गयी थी, परन्तु अपनी आपत्तियों में कहीं भी यह नहीं कहा है कि निर्णीत ऋणी की भूमि जो उसने अपनी व्यक्तिगत हैसियत से खरीद की, कितनी भूमि पर डिक्रीदार कब्जा लेना चाहता है।
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विद्वान अधिवक्ता निगरानीकर्तागण के द्वारा अपनी आपत्ति अन्तर्गत धारा 47 सी. पी. सी. के पैरा नम्बर-5 में यह कहा गया है कि डिक्रीदार निर्णीत ऋणी की भूमि का कब्जा लेना चाहता है, परन्तु पैरा नम्बर-4 में कहा गया है कि निर्णीत ऋणी के द्वारा विवादित सम्पत्ति के दक्षिण में कुछ भूमि खरीदी गयी थी, परन्तु अपनी आपत्तियों में कहीं भी यह नहीं कहा है कि निर्णीत ऋणी की भूमि जो उसने अपनी व्यक्तिगत हैसियत से खरीद की, कितनी भूमि पर डिक्रीदार कब्जा लेना चाहता है।
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