11. न्याययुक्त शासक अपने मंत्रियों की मंत्रणा मानता है जबकि शक्तिशासक उसकी उपेक्षा करता है।12. इसपर दूसरे बोले, ‘ वहां के राजा परस्पर न्याययुक्त वर्ताब नहीं करते. 13. साधन सीमित हैं, मनुष्यता या मानवाधिकारों के नाते उनका न्याययुक्त वितरण ही होना चाहिए। 14. इसी आधार पर ‘ मूल वैदिक धर्म ‘ को मैं ईश्वरीय और न्याययुक्त मानता हूं। 15. यही न्याययुक्त व्यवहार तुंगभद्रा ने भी किया है, क्योंकि तुंगा और भद्रा मिलकर तुंगभद्रा बनती है। 16. इसलिये मनुष्यको अपने अधिकारका त्याग करना है और दूसरेके न्याययुक्त अधिकारकी रक्षाके लिये यथाशक्ति अपने कर्तव्यका पालन करना है । 17. उनकी चाहना पूरी करनेमें दो बातोंका ख्याल रखना है-उनकी चाहना न्याययुक्त हो और हमारी सामर्थ्यके अनुरूप हो । 18. हमें वही सेवा करनी है, जिसको करनेकी हमारेंमें सामर्थ्य है और सेवा लेनेवाला हमारेसे न्याययुक्त सेवा चाहता है । 19. अतः अपनी चाहना तो रखें नहीं और दूसरोंकी न्याययुक्त चाहना अपनी शक्तिके अनुसार पूरी कर दें, तो हम स्वाधीन हो जायँगे । 20. जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के प्रति समर्पित हो, यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त होना चाहिए।