105. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना-सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब सम्पत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है ।
12.
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धॄत हो जाने तक बना रहता है ।
13.
यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता किंतु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता ।
14.
चौथा-चोरी, रिष्टि या गॄह-अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्ति रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मॄत्यु या घोर उपहति होगा ।
15.
चुनाव द्वारा भी इनमें कोई परिवर्तन सम्भव नहीं | मुसलमान काफिरों की हत्या करने से स्वर्ग पाएंगे | हमारे पास भारतीय दंड संहिता की धारा १ ० २ के अंतर्गत प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार है | आइये प्रण करें कि हम धरती पर इस्लाम को नहीं रहने देंगे |
16.
103. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मॄत्यु कारित करने तक का होता है-संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दो ष कर्ता की मॄत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित भारतीय दंड संहिता, 1860 17
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103. कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मॄत्यु कारित करने तक का होता है-संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दो ष कर्ता की मॄत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित भारतीय दंड संहिता, 1860 17
18.
यद्यपि भारतीय संविधान-षडयंत्र के अधीन-इन हत्यारी व लुटेरी संस्कृतियों को, अनुच्छेद 29 (1) के अधीन, बनाए रखने का हर मुसलमान व हर ईसाई को असीमित मौलिक अधिकार देता है, तथापि प्रत्येक गैर मुसलमान व गैर ईसाई को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 102 व 105 के अधीन प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार है।
19.
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मॄत्यु या उपहाति, या सदो ष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मॄत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है ।
20.
स्प ष् टीकरण 1-कोई व्यक्ति किसी लोक सेवा द्वारा ऐसे लोक सेवक के नाते किए गए या किए जाने के लिए प्रयतित, कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है ।
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