उपरोक्त साक्ष्यों की विवेचन एवं विधिक व्यवस्थाओं के प्रकाश में समस्त परिस्थितियों के विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि अभियोजन ने आरोपित आरोप अन्तर्गत धारा-302 भा0द0सं0 सपठित धारा-34 भा0द0सं0 विरूद्व अभियुक्तगण रमेश चन्द्र, रामप्रकाश प्रजापति एवं राजेश युक्तियुक्त रूप से सन्देह से परे साबित नहीं किया है तथा अभियुक्तगण दोषमुक्त किये जाने योग्य है।
12.
इस प्रकार सत्र परीक्षण संख्या-598 / 03 अन्तर्गत धारा-25 आयुद्व जो अधिनियम जो अभियुक्त विवेक सिंह उर्फ नीलू सिंह से सम्बन्धित है तथा सत्र परीक्षण संख्या-599/03 अन्तर्गत धारा-4/25 आयुद्व अधिनियम अभियुक्त विवेक सिंह उर्फ नीलू सिंह से सम्बन्धित है एवं सत्र परीक्षण संख्या-600/02 सरकार बनाम मुकेश प्रजापति के विरूद्व आरोपित आरोप अन्तर्गत धारा-4/25 आयुद्व अधिनियम युक्तियुक्त रूप से सन्देह से परे साबित नहीं है।
13.
यद्यपि प्रतिरक्षा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि घटना के अपने साबित करने के अपने भार (इनतकमद) को युक्तियुक्त रूप से सन्देह से परे साबित करे, बल्कि विधिक रूप से यह आवश्यक है कि वह अपने साक्ष्यों से इसप्रकार की संम्भावना उत्पन्न कर दे कि अभियोजन कथानक जिसप्रकार से प्रस्तुत किया गयाहै वह सन्देह पूर्ण एवं भ्रामक है तथा अविश्वासनीय है तो वह सन्देह का लाभ पाने के लिए पर्याप्त हो जाता है।
14.
99. कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है-यदि कोई कार्य, जिससे मॄत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद््भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुए लोक सेवक द्वारा किया जाता है या किए जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि-अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो ।
15.
(ख) जहाँ किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति में अवनत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा, यह युक्तियुक्त रूप से साध्य नहीं है कि ऐसी जाँच की जाए; या (ग) जहाँ, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में यह समीचीन नहीं है कि ऐसी जाँच की जाए।
16.
106. घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जब कि निर्दो ष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है-जिस हमले से मॄत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दो ष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है ।
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