11. ' मनु ने उसे शूद्र कहा, जो अन्य तीन वर्णों के योग्य कर्म न कर सके। 12. अर्जुन भिक्षाजीवी होना पसंद करता है, पर युद्ध को घोर व न करने योग्य कर्म कहता है। 13. और दूसरे तुमने न करने योग्य कर्म यानी दुष्कर्म करके बहुत बङा पाप अपने सिर ले लिया है । 14. 86 यज्ञ, दान और तप से त्याग करने योग्य कर्म ही नहीं, अपितु अनिवार्य कर्त्तव्य कर्म है ; 15. जैसा भी मन वश हो जाए तुरंत ही उसे योग्य कर्म में जोड़ देना होगा नही तो वो तुमको खा जाएगा!! 16. कैसे है? उसका उद्देश्य क्या है? उसके करने योग्य कर्म क्या हैं? किससे वह गहराई से अच्छा महसूस कर सकता है? 17. न करने योग्य कर्म को करने से रोक कर, करने योग्य कर्म में ही इन्द्रियों को लगाना और कार्यरत रखना ' निग्रह ' है। 18. न करने योग्य कर्म को करने से रोक कर, करने योग्य कर्म में ही इन्द्रियों को लगाना और कार्यरत रखना ' निग्रह ' है। 19. इस प्रकार जिस की बुद्धि में सभी कर्म ब्रह्म हो जाते हैं, वह ब्रह्म को ही प्राप्त होता है...... यज्ञ करने योग्य कर्म है । 20. अर्थात जो पुरूष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है, लेकिन यहां तो संन्यासियों के यहां प्रवेश शुल्क निर्घारित है।