हर नीति कथा की तरह इस कविता के मूल में एक बहुत सरलमति विचार है-कविजी और कविता का वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है = समकालीन कवि कविता का ऐसा सम्बन्ध नहीं रहा-क्या इस सरलमति विचार के लिए हम एक नए कवि की प्रसंशा करेंगे?
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हर नीति कथा की तरह इस कविता के मूल में एक बहुत सरलमति विचार है-कविजी और कविता का वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है = समकालीन कवि कविता का ऐसा सम्बन्ध नहीं रहा-क्या इस सरलमति विचार के लिए हम एक नए कवि की प्रसंशा करेंगे?
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मित्र यही तो मैंने भी कहा है कि यह कविता ही का कहना है मेरा नहीं कि कविजी और कविता का वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है = समकालीन कवि कविता का ऐसा सम्बन्ध नहीं रहा-क्या इस सरलमति विचार के लिए हम एक नए कवि की प्रसंशा करेंगे?
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ग्रैंड डिजाइन पुस्तक के अंश को यहां प्रस्तुत करना तो रुचिकर हैं लेकिन “जीवन सार” के संदर्भ में “अब भगवान से विनती की जरूरत नहीं” शीर्षक भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विपरीत है| नए ज्ञान का आवाहन करते हमें याद रखना चाहिए कि ज्ञान का विषय सरलमति पाठकों के मन में द्वंद्व न उत्पन्न कर दे|
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मित्र यही तो मैंने भी कहा है कि यह कविता ही का कहना है मेरा नहीं कि कविजी और कविता का वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है = समकालीन कवि कविता का ऐसा सम्बन्ध नहीं रहा-क्या इस सरलमति विचार के लिए हम एक नए कवि की प्रसंशा करेंगे? यह दूर की कौडी नहीं, पास की है.
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४. पंकज के बोलने में शामिल उनके बयान बासी हैं...आपत्तियां ऐसी जैसे “अँधेरे में” को बिना पढ़े कोई यह कहने लगे कि कुछ और लम्बी होती तो एक किताब ही बन जाती...और सरलमति यह कि सेक्स वाले सभी (?) प्रसंग अंग्रेजी में हैं...कि कहानीकार अपने पात्रों के प्रति निर्मम क्यों है...इस फिकरेबाजी के बाद हाथ में पड़ी कहानी की पुस्तक पढ़ रहे हैं और यहीं सबसे ज़्यादा एक्सपोज़ हो रहे हैं...
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बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “ अपनों ” और “ दूसरों ” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष ‘ कविता ' में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “ निर्णय ” बहुत हैं
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बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “ अपनों ” और “ दूसरों ” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष ‘ कविता ' में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “ निर्णय ” बहुत हैं
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बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “ अपनों ” और “ दूसरों ” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष ‘ कविता ' में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “ निर्णय ” बहुत हैं
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बहरहाल, सरल मति की दूसरों में तलाश करते हुए, हम अपने को बख्सते चलते हैं... यह “अपनों” और “दूसरों” का संबंध जितना समस्या भरा है सो तो है ही, पर मैंने सरलमति निष्कर्ष 'कविता'में पाया है, कवि में नहीं यह आप पढ़ना नहीं चाहते हैं और जिसे सरलमति निष्कर्ष कहा गया है वह सरलमति है कि नहीं इसका कोई खंडन नहीं है, “निर्णय” बहुत हैं आपको इस बात का भी मलाल कि प्रगतिशीलता की अपनी कचहरी क्योंकर है और वहां इतने पतन के बावजूद ज़िन्दा बहसें क्यों हो रही हैं...यानि उन्हीं के बीच...
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