11. असत्प्रतिपक्षितत्त्व के नहीं होने से सत्प्रतिपक्ष (प्रकरणसम) हेत्वाभास होता है। 12. पहले सव्यभिचार आदि पाँच प्रकारों के हेत्वाभास के लक्षण आदि कहे गये हैं। 13. हेत्वाभास प्रतिबद्ध है, क्योंकि वह इतना दावा करने के लिए प्यार करता है.14. हेत्वाभास केविषय में भी कुमारिल और न्याय में कुछ अंश में कुछ भेद है.15. दूषित अनुमानों में हेतु वास्तव में हेतु नहीं होता अत: उसको हेत्वाभास कहते हैं। 16. यथा विपक्ष में हेतु की असत्ता नहीं रहने पर सव्यभिचार नामक हेत्वाभास होता है। 17. वाद, जल्प और वितण्डा, तीनों प्रकार की बहस में हेत्वाभास संभव है। 18. भला नास्तिक लोगों के हेत्वाभास वेद शास्त्रज्ञ के सम्मुख क्या प्रभाव डाल सकते थे? 19. यहाँ छल, जाति तथा हेत्वाभास का प्रयोग एवं निग्रह स्थान का प्रदर्शन भी विहित है। 20. इसलिए हेत्वाभास के चार प्रकार माने जा सकते हैं-विरुद्ध, असिद्ध, सन्दिग्ध तथा अकिंचित्कर।