‘ सुलगती टहनी ' के अन्तिम अंश में वर्मा ने लिखा है कि: “ रिल्के ने जिस एंजिल से ईष्या की थी, क्या इस दुनिया में उसका प्रतिरूप एक लेखक नहीं है, एक ख़बर देने वाला हरकारा-दोतरफ़ा दूत-जो ईश्वर की ख़बर मनुष्य को और धरती के सौन्दर्य की झलक ईश्वर को देता रहता है? ” हरकारे की यह ‘ गुहार ' इस पुस्तक के हर पन्ने पर गूँजती सुनाई देती है।
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' पद्मावत' के अन्तिम अंश (653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे, “उनका शरीर क्षीण हो गया था, उनकी दृष्टि मन्द पड़ गयी थी, उनके दाँत जाते रहे थे उनके कानों में सुनने की शक्ति नहीं रह गयी थी, सिर झुक गया था, केश श्वेत हो चले थे तथा विचार करने तक की शक्ति क्षीण हो चली थी” किन्तु इसका कोई संकेत नहीं है कि इस समय वे कितने वर्ष की अवस्था तक पहुँच चुके थे।
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सशक्त प्रस्तुति! प्रवीण जी मैंने ज्यादा कहानीं नहीं पढी इसीलिए टिप्पणियां करने से बचता हूँ पर आपकी कहानी की शैली ने विवश कर दिया! सब कुछ आकर्षक है और एक विशेष बात जो मैंने नोट की वह यह की प्रेमचन्दजी की कहानियों में जिस तरह अपनी बात को सच बताने के लिए कुछ-कुछ अंतराल पर मानव स्वभाव को दर्शाने वाली बातों या ऐसा कहें की सूक्तियों का प्रयोग होता रहा है वैसा ही कुछ इस कहानी के अन्तिम अंश में देखने को मिला | ऐसे स्थलों से कहानी की शोभा बढ़ जाती है | जैसे की..
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' पद्मावत ' के अन्तिम अंश (653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे, “ उनका शरीर क्षीण हो गया था, उनकी दृष्टि मन्द पड़ गयी थी, उनके दाँत जाते रहे थे उनके कानों में सुनने की शक्ति नहीं रह गयी थी, सिर झुक गया था, केश श्वेत हो चले थे तथा विचार करने तक की शक्ति क्षीण हो चली थी ” किन्तु इसका कोई संकेत नहीं है कि इस समय वे कितने वर्ष की अवस्था तक पहुँच चुके थे।
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