21. लेकिन उसकी चेतना का संयत्र ‘ आत्मा ' नहीं मरता (आत्मन् शब्द संस्कृत मे पुल्लिंग है) । 22. औपनिषदिक आदर्शवादियों ने इस आत्मन् को कभी ‘चेतना-पुंज मात्र ' (विज्ञान-घन) और कभी ‘परम चेतना' (चित्) के रूप में स्वीकार किया है। 23. अस्तित्ववादी विचारधारा में प्रत्येक व्यक्ति यानी आत्मन् का अपना विशिष्ट महत्त्व है, उसकी विलक्षणता को समझ पाना असंभव है. 24. मधयम पुरुष के लिए आप शब्द भी प्रयुक्त होता है, इस शब्द का आधाार संस्कृत का ' आत्मन् ' शब्द है। 25. परम प्रिय शान्त आत्मन् आपने इतनी भीषण तारीफ कर डाली है कि मैं शर्म और संकोच से लाल-भभूका हो रहा हूं । 26. आत्मन् सुदूर उपनिषदों से निकला शब्द है, जिसे तार्किक तीक्ष्णता योगवाशिष्ठ में और दार्शनिक पूर्णता आचार्य शंकर के काम में प्राप्त होती है।27. आत्मन् सुदूर उपनिषदों से निकला शब्द है, जिसे तार्किक तीक्ष्णता योगवाशिष्ठ में और दार्शनिक पूर्णता आचार्य शंकर के काम में प्राप्त होती है।28. आत्मन् सुदूर उपनिषदों से निकला शब्द है, जिसे तार्किक तीक्ष्णता योगवाशिष्ठ में और दार्शनिक पूर्णता आचार्य शंकर के काम में प्राप्त होती है।29. सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र मंडल, पर्वत और मैदान, हे आत्मन् , क्या ये सब उसका दर्शन नहीं है जो शास्ता है? 30. यही नहीं प्रत्येक विषय पर पहले से तैयार योजनाएं तथा बौद्धिक क्रियाएं आत्मन् से अपने विवेक के अनुसार चयन के अवसर छीन लेती हैं.