21. वस्तुत: उसका क्षेत्रफल का नियम अब कोणीय संवेग अविनाशिता के सिद्धांत के नाम से सुविदित है। 22. बड़े पिंड जैसे ग्रह या कंचे घूर्णन के कारण कोणीय संवेग या चुंबकीय क्षेत्र होता है। 23. घूर्णक्षस्थापी की क्रियाएँ सभी परिभ्रमणशील या घूर्णशील पिंडों में दृष्टिगोचर होती है, किंतु अधिक कोणीय संवेग ( 24. परिभ्रमण करते हुए किसी पिंड के कोणीय संवेग में परिवर्तन करने के लिये एक बलघूर्ण आवश्यक होता है। 25. किंतु अपने जड़त्व तथा अत्यधिक कोणीय संवेग के कारण भूमि अक्ष अपनी प्रारंभिक दिशा के ही समांतर रहेगा। 26. किंतु अपने जड़त्व तथा अत्यधिक कोणीय संवेग के कारण भूमि अक्ष अपनी प्रारंभिक दिशा के ही समांतर रहेगा। 27. कोणीय संवेग अधिक हो इस हेतु काफी अधिक व्यासवाला गतिपालक चक्र (फ्लाई-ह्वील) घूर्णाक्षस्थापी में प्रयुक्त किया जाता है।28. कोणीय संवेग अधिक हो इस हेतु काफी अधिक व्यासवाला गतिपालक चक्र (फ्लाई-ह्वील) घूर्णाक्षस्थापी में प्रयुक्त किया जाता है।29. परिभ्रमण करते हुए किसी पिंड के कोणीय संवेग में परिवर्तन करने के लिये एक बलघूर्ण आवश्यक होता है। 30. यह जो इर्द-गिर्द चक्कर लगाना है वह शायद प्रारंभिक कोणीय संवेग की बारम्बार क्रिया के फलस्वरूप हो पाया होगा।