जिसे लोग अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में नहाने के पानी से लेकर, गुलकंद के रूप में खाने और गुलाबी कपड़ों और प्रसाधनों को इस्तमाल कर गुलाब जैसा दिखने और महकने की ख्वाइश भी रखते है।
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तुम हो गन्ने की रस जैसी मैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ तेरा चेहरा गुलाब जैसा मैं नोडू जैसा दीखता हूँ तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ! मैं हूँ कैसा नादान प्रिये, कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये!!
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लहरों के नीले अवगुण्ठन मेंजहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता थावहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं-और तुम मौन होमैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरेंफेन का शिरस्त्राण पहनेसिवार का कवच धारण किएनिर्जीव मछलियों के धनुष लिएयुद्धमुद्रा में आतुर हैं-और तुम कभी मध्यस्थ होकभी तटस्थकभी युद्धरत
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बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है कि ज़हर-ए-ग़म का नशा भी शराब जैसा है कहां वो क़ुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे तेरे फिराक़ का आलम भी ख्वाब जैसा है मगर कभी कोई देखे कोई पढ़े तो सही दिल आईना है तो चेहरा किताब जैसा है...
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लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं-और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं-और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
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तो मिलते हैं एक छोटे / लम्बे ब्रेक के बाद:):) जब भी लौट कर आऊँगी यहीं आऊँगी:) मिला जब वो प्यार से, तो गुलाब जैसा है आँखों में जब उतर गया, शराब जैसा है खामोशियाँ उसकी मगर, हसीन लग गईं कहने पे जब वो आया तो, अज़ाब जैसा है
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लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं-और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं-और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
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लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं-और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार का कवच धारण किए निर्जीव मछलियों के धनुष लिए युद्धमुद्रा में आतुर हैं-और तुम कभी मध्यस्थ हो कभी तटस्थ कभी युद्धरत
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चाँद-तारों, हुस्नो-इश्क, गुलाब जैसा चेहरा गोभी के फूल जैसा चेहरा, बादल और शाम से भरी कवितायेँ (?) और उनपर “ साधुवाद ” “ रामराम ” “ सुन्दर प्रस्तुति ” आदि आदि टिप्पणियां, कोई अपने आप को कैसे कविता (?) लिखने के लिए रात रात भर जगने से रोक पा ए.
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मैं एक गाँव का हूँ, गंवार, तुप छैल छबीली दिल्ली की मैं राम राम और पाँव छुऊँ तुम हाय हाय ओंर हेल्लो की, जीवन गाडी के दो पहिये, दोनों कैसे बेमेल मिले! मैं हूँ कैसा नादान प्रिये कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये! तुम हो गन्ने की रस जैसी मैं कोल्हू जैसा दीखता हूँ तेरा चेहरा गुलाब जैसा मैं नोडू जैसा दीखता हूँ तुम नॉएडा में इंदिरा गाँधी मैं राज नारायण लगता हूँ! मैं हूँ कैसा नादान प्रिये, कैसे समझाऊँ प्यार प्रिये!!
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