जो लोग राम राम कहकर जँभाई लेते हैं (अर्थात आलस से भी जिनके मुँह से राम नाम का उच्चारण हो जाता है) पापों के समूह (कोई भी पाप) उनके सामने नहीं आते ।
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भावार्थ:-जो लोग राम-राम कहकर जँभाई लेते हैं (अर्थात आलस्य से भी जिनके मुँह से राम-नाम का उच्चारण हो जाता है), पापों के समूह (कोई भी पाप) उनके सामने नहीं आते।
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पाँच उपवायु को देखें, नाग उदगार (बमन) में, कुर्म नेत्रोंमीलन में, कृकल छींकने में, देवदत्त जँभाई लेने में और सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त धनञ्जय वायु मृत शरीर का भी साथ नहीं छोड़ता।
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०२-प्रश्न मैं चबाती और छींकती हूँ बिना आवाज बंद कर लेती हूँ अपना मुँह जब आती है जँभाई मैं काटती नहीं हूँ होंठ और हाथों के नख न ही मैं अवरुद्ध कर पाती हूँ वायु का बहाव ऐसा क्यों / क्या मैं नहीं रह गई हूँ मनुष्य?
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मैं चबाती और छींकती हूँ बिना आवाज बंद कर लेती हूँ अपना मुँह जब आती है जँभाई मैं काटती नहीं हूँ होंठ और हाथों के नख न ही मैं अवरुद्ध कर पाती हूँ वायु का बहाव ऐसा क्यों / क्या मैं नहीं रह गई हूँ मनुष्य?
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इन पाँच प्राणों के अतिरिक्त शरीर में ‘ देवदत्त ', ‘ नाग ' ‘ कृंकल ', ‘ कूर्म ' एवं ‘ धनंजय ' नामक पाँच उपप्राण हैं, जो क्रमशः छींकना, पलक झपकाना, जँभाई लेना, खुजलाना, हिचकी लेना आदि क्रियाओं को संचालित करते हैं।
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भावार्थ:-जब एक साधारण मनुष्य को भी (आलस्य से) जँभाई लेते समय ' राम ' कह देने से ही सब सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं, तब श्री रामचन्द्रजी के प्राण प्यारे भरतजी के लिए यह कोई बड़ी (आश्चर्य की) बात नहीं है॥ 311 ॥
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