21. जल्प और वितण्डा में अन्तर यह है कि जल्प करने वाला अपना पक्ष स्थापन करते हुए प्रतिपक्ष का खंडन करने का प्रयास करता है। 22. जैनन्याय में भी कथा के तीन भेद बताए गए हैं-वाद, जल्प और वितंडा; पर इनमें केवल “वाद” को ही उपादेय माना गया है। 23. जल्प और वितण्डा में अन्तर यह है कि जल्प करने वाला अपना पक्ष स्थापन करते हुए प्रतिपक्ष का खंडन करने का प्रयास करता है।24. जल्प और वितण्डा में अन्तर यह है कि जल्प करने वाला अपना पक्ष स्थापन करते हुए प्रतिपक्ष का खंडन करने का प्रयास करता है। 25. इन विद्याओं में उत्तर की अपेक्षा पूर्व-२ (पहले आने वाले) श्रेष्ठ हैं अर्थात वितण्डा से श्रेष्ट जल्प है और सर्वश्रेष्ट वाद है। 26. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है-' वाद: प्रवदतामहम् ' [72] समय-समय पर जल्प एवं वितण्डा भी करनी पड़ती है। 27. गौतम ने न्यायसूत्र में संधायसंभाषा का ही उल्लेख ' वाद' नाम से किया तथा जिसे चरक ने विगृह्यसंभाषा कहा, उसी का वर्गीकरण जल्प और वितण्डा में किया। 28. जल्प और वितण्डा के अंग रूप में वादीनियम, प्रतिवादी नियम सभापति नियम, मध्यस्थ नियम तथा सदस्य नियम आदि का निर्देश प्राचीन आचार्यों ने किया है।29. प्राचीन न्याय शास्रों, जिनमें गौतम का न्याय सूत्र में वाद-विदाद के कई तरीकों का वर्णन है जैसे, वद, जल्प , वितंड आदि। 30. गौतम ने न्यायसूत्र में संधायसंभाषा का ही उल्लेख ' वाद ' नाम से किया तथा जिसे चरक ने विगृह्यसंभाषा कहा, उसी का वर्गीकरण जल्प और वितण्डा में किया।