यह दिन की तरह खुली बात है कि नास्तिकता और आस्तिकता में भेद है, ईश्वरवाद और निरीश्वरवाद में भेद है, स्वर्ग के काल्पनिक सत्य और जगत के कठोर याथार्थ में भेद है।
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नास्तिक कम्यूनिस्टों ने गले से जनेऊ उतारकर फेंक दिया, पूजा-पाठ करना बंद कर दिया, जाति-व्यवस्था को अस्वीकार किया, लेकिन अपनी नास्तिकता और निरीश्वरवाद को सार्वजनिक आस्था का विषय बनाने से परहेज किया।
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दूसरीः किसी बहुधर्म समाज में धर्म निरपेक्षता का यह भी मतलब है कि शासन सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहे या जैसा कि बहुत से धार्मिक व्यक्ति कहते हैं निरीश्वरवाद सहित सभी धर्मों को बराबर सामान दें।
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लेकिन पेरियार के तर्कबुद्धिवाद और निरीश्वरवाद के विचार जातिभेद की समस्या का हल निकालने और दलितों की मुक्ति की दिशा में कुछ भी कारगर नहीं सिद्ध हो सके क्योंकि सामाजिक अन्तरविरोधों की उनकी समझ ग़लत थी और उनके पास कोई भी ठोस सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम नहीं था।
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और जब वह यह भी कहता है कि अनीश्वरवाद हर देश और हर काल के लिए नहीं है और उसका प्रचार विशेष सामाजिक परिस्थिति में ही होता है, तो फिर इसे सदा के लिए मान्य करके मार्क् सवाद पर निरीश्वरवाद का कलंक लगाना कहाँ तक जायज है?
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ये अलग बात है कि मिलीटेंट किस्म के निरीश्वरवाद में कभी कभी आस्थावादियों के लिए उपहास देखने को मिलता है जो हमें नही रुचता (लेकिन पूरी तरह दावा नहीं कर सकते कि हम इससे मुक्त हैं वरना पड़ोस के मंदिर से फिल्मी धुनों के आधार पर बने भक्ति गीतों की कर्कशता इतना न चिढ़ाती) कुल मिलाकर हमारा पंथ रहा है कि प्रत्येक को अपनी आस्था का, जिसमें आस्थाहीन भी शामिल हैं, का अधिकार है।
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उदाहरण के लिए-कर्मकाण्ड आधारित आरंभिक वेद शिक्षा के प्रत्ययन के कुछ उपरांत उद्भवित ज्ञानकाण्ड आधारित वेदान्त / उपनिषद् शिक्षाएं, बुद्ध द्वारा निरीश्वरवाद की शिक्षा देने के बावजूद तत्कालीन हिंदुओं द्वारा उन्हें विष्णु का अवतार घोषित करना, बाइबल के पुराने नियम के बाद यीशु मसीह की शिक्षाओं पर आधारित नया नियम प्रतिपादित होना और उसे प्रचंड सामाजिक मान्यता मिलना, चार्वाक जैसे ऋषि को भी सम्मान मिलना, गुरुनानकदेव जी की वेदान्त आधारित शिक्षा को अपार समर्थन मिलना, कबीर की निर्भीक, कटाक्षपूर्ण एवं निर्गुण भक्ति आधारित शिक्षाओं को हृदयों में बड़ा स्थान मिलना आदि।
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उदाहरण के लिए-कर्मकाण्ड आधारित आरंभिक वेद शिक्षा के प्रत्ययन के कुछ उपरांत उद्भवित ज्ञानकाण्ड आधारित वेदान्त / उपनिषद् शिक्षाएं, बुद्ध द्वारा निरीश्वरवाद की शिक्षा देने के बावजूद तत्कालीन हिंदुओं द्वारा उन्हें विष्णु का अवतार घोषित करना, बाइबल के पुराने नियम के बाद यीशु मसीह की शिक्षाओं पर आधारित नया नियम प्रतिपादित होना और उसे प्रचंड सामाजिक मान्यता मिलना, चार्वाक जैसे ऋषि को भी सम्मान मिलना, गुरुनानकदेव जी की वेदान्त आधारित शिक्षा को अपार समर्थन मिलना, कबीर की निर्भीक, कटाक्षपूर्ण एवं निर्गुण भक्ति आधारित शिक्षाओं को हृदयों में बड़ा स्थान मिलना आदि।
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