21. अगुरूलघु गुण का यह सूक्ष्म परिणमन वचन के अगोचर है और मात्र आगम प्रमाण से जानने योग्य है। 22. अस्थिर-जिसके उदय से इन धातुओं में उत्तरोत्तर अस्थिर रूप परिणमन होता जाता है वह अस्थिर नामकर्म है। 23. मान्यवर, क्षमा आत्मा का स्वभाव है किंतु अनादिकालसे मिथ्यात्व के वशीभूत होकर प्रमाद के कारण यह विभाव रूप परिणमन कर रहा है। 24. ये वर्गणायें स्वयं ही पर्याप्ति, निर्माण, अंगोपांग आदि के उदय से औदारिक या वैक्रियिक शरीर के आकार परिणमन कर जाती है। 25. कर्तावादी सम् प्रदाय पदार्थ का तथा उसके परिणमन का कर्ता (उत् पत्ति-कर्ता, पालनकर्ता तथा विनाशकर्ता) ईश् वर को मानते हैं। 26. ऋतुओं के अनुसार प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में परिणमन होता है, जिसमें नए से पुराना और पुराने में नया रूप आता-जाता रहता है। 27. वे अच्छे से जानते है, प्रत्येक आत्मा का स्वतंत्र पुरूषार्थ होता है, जहाँ परिणमन होना है वहाँ होगा, जहाँ नहीं होना है वहां नहीं होगा। 28. जीव और पुद्गल की गति, स्थिति, आधार और परिणमन में अनिवार्य निमित्त (सहायक) होने से उनकी उपयोगिता एवं आवश्यकता सिद्ध है। 29. मनुष्य यदि यह मानना छोङ देवे कि पदार्थ का परिणमन हम अपने अनुकूल कर सकते हैं तो दुःखी होने की कुछ भी बात ना रहे।” 30. मनुष्य यदि यह मानना छोङ देवे कि पदार्थ का परिणमन हम अपने अनुकूल कर सकते हैं तो दुःखी होने की कुछ भी बात ना रहे।