21. वैदिक ज्योतिष में पूषा को रेवती नक्षत्र का देवता माना जाता है । 22. आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ ॐ स्वस्ति न ऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। 23. सवितृ, बृहस्पति और पूषा प्रभृति विभिन्न देवों ने इसके फलकों को सहारा दे रखा है। 24. ाणी, वरुनानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि को पहचाना गया है,और इनकी स्तुतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। 25. स्वस्ति-पाठ-स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु। 26. रुद्र ने सविता की दोनों बांहें काट डालीं तथा भग की आंखें और पूषा के दांत तोड़ डाले। 27. इहो सहस्रदक्षिणो यज्ञ, इह पूषा निषीदतु॥-पा ० गृ ० सू ० १. ८. १ ० 28. कुछ विद्वानों का यह मानना है आत्मा को प्रकाशमयी करके परमात्मा के साथ जोड़ना पूषा के कार्यक्षेत्र में आता है । 29. इसके पश्चात् यजमान के ललाट में तिलक इस मंत्र से करे-ॐ स्वस्तिना इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्तिन: पूषा विश्ववेदा: । 30. कुछ वैदिक ग्रंथों के अनुसार पूषा सूर्य का ही एक नाम है तथा इस देवता को प्रकाश का देवता माना जाता है ।