21. वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग के प्राणतत्त्व होते हैं, जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। 22. इस अध्याय में ' प्राणतत्त्व ' की उपासना और ' ब्रह्मविद्या ' के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। 23. प्राणतत्त्व के माध्यम से आत्मतत्त्व से उनका सम्बन्ध बनता है और शरीर हो जाता है चैतन्य जिसे हम जीवन कहते हैं।24. मोक्ष के लिए प्राणतत्त्व की उपासना के सन्दर्भ में, ऋषि ने एक सुन्दर रूपक द्वारा प्राणों के महत्व को दर्शाया है। 25. रूपक चेतना काव्य का प्राणतत्त्व है दादू काव्य का स्वरूप लौकिक एवं पारलौकिक दोनों की आधारभूत भावनाओं के समन्वय से निर्मित हुआ है। 26. मानव-शरीर में आकाश और प्राणतत्त्व से भिन्न जो पृथ्वी, जल, अग्नि का अंश विद्यमान है, वह मूर्त और मरणधर्मा है। 27. जिस प्रक्रिया द्वारा विश्वमयी प्राणतत्त्व में से खींचकर अधिक मात्रा में प्राणशक्ति को हम अपने अन्दर धारण करते हैं, उसे प्राणायाम कहा जाता है। 28. दोनों के सहयोग से ' साम ' बनता है, अर्थात यदि प्राणतत्त्व से गायन किया जाये, तो वह जीवन-साधना को सफल बनाता है। 29. अत: इस शरीर में जो प्राणतत्त्व है, वही आत्मा है, परमात्मा का अंश है, वही सत है, वही जीवन है। 30. मोक्ष हेतु प्राणोपासना मोक्ष के लिए प्राणतत्त्व की उपासना के सन्दर्भ में, ऋषि ने एक सुन्दर रूपक द्वारा प्राणों के महत्व को दर्शाया है।