21. प्रापक की आवश्यकता को जाने बगैर ही संदेश का निर्माण किया जाता है।22. दूसरे शब्दों में-प्रापक से संचारक जो कुछ कहना चाहता है वह संदेश है। 23. इसमें संचारक और प्रापक दोनों की भूमिका एक ही व्यक्ति को निभानी पड़ती है। 24. प्रापक सुनकर, पढक़र, देखकर या छूकर संदेश को ग्रहण कर सकता है।25. उसकी बातों को सुनते समय संचारक की भूमिका बदलकर प्रापक जैसी हो जाती है। 26. संचार की इस प्रक्रिया द्वारा संचारक एवं प्रापक के मध्य संवाद स्थापित होता है। 27. प्रापक की न तो कोई स्वतंत्र विचारधारा होती है और न तो कोई अवधारणा।28. यह द्वि-मार्गीय प्रक्रिया है, जिसमें संचारक और प्रापक आमने-सामने बैठकर विचार-विमर्श करते हैं। 29. माध्यम (Channel): माध्यम की मदद से संदेश प्रापक तक पहुंचता है। 30. संचारक से प्रापक स्पष्ट शब्दों में संदेश सम्प्रेषित करने की अपेक्षा भी रखता है।