राज्य सूचना आयुक्त ज्ञानेन्द्र शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि सूचना आयोग के 11 न्यायालयों में किस वाद की सुनवाई किस तिथि को होना है, उसका विवरण वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाएगा।
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आमतौर पर शिकायत रहती थी कि वाद की सुनवाई का नोटिस समय से नहीं मिलता, जिसकी वजह से लोग सुनवाई के समय उपस्थित हो पाने के कारण अपना पक्ष नहीं रख पाते थे।
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उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुनने एवं क्या प्रतिवादी द्वारा किया गया निर्माण अवैध है तथा नगरपालिका क्या इस न्यायालय को इस वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं अधिनियम के प्राविधानों के विपरीत है।
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क्या वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस न्यायालय को प्राप्त नहीं है, क्या वादीगण द्वारा प्रतिवादी को गलत रूप से आवष्यक पक्षकार बनाया जैसा कि प्रतिवाद पत्र के प्रस्तर सं016 में अभिकथन किया गया है?
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प्रतिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि इस वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार राजस्व न्यायालय को है, दीवानी न्यायालय को नहीं हैं तथा वाद धारा-331 जमींदारी विनाश अधिनियम के प्राविधानों से बाधित है।
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लखनऊ सूचना आयोग द्वारा बहु प्रतीक्षित योजना लागू कर दी गई है जिसके अन्तर्गत आयोग में किसी भी वाद की सुनवाई की तारीख आयोग की वेबसाइट डब्लूडब्लू यूपी एसआईसी डॉट इन (www.upsic.in) पर क्लिक करके पता की जा सकती है।
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निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि चूंकि मूलवाद में इस तथ्य को अभिनिर्धारित करना था कि क्या विवादित सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति है या नहीं और इसप्रकार अवर न्यायालय को वाद की सुनवाई का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं था?
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वादी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि वर्तमान वाद धारा-10 कंपनी एक्ट से बाधित नहीं हैं, वाद कारण किच्छा में उत्पन्न हुआ है और इस आधार पर ऊधम सिंह नगर के न्यायालय को वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
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अपनी निगरानी में निगरानीकर्ता द्वारा मुख्य आधार यह लिया गया है कि-परीक्षण न्यायालय द्वारा आक्षेपित आदेश पूर्व पारित आदेश दिनांक 10-11-09 के पूर्णतया विपरीत होने के कारण बाधित है तथा अपीलीय न्यायालय में सारतः समान विषय पर निगरानी वाद की सुनवाई के दौरान आक्षेपित आदेश का पारित किया जाना परीक्षण न्यायालय का अधिकारिता रहित आदेश है।
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जबाबदावा दाखिल किया गया जिसमें कहा गया कि दावा वादी पोषणीय नहीं है, विवादित भूमि के सम्बन्ध में दाखिल खारिज का मुकदमा चला था जिसके विरूद्ध अपीलार्थी/वादी ने अपील सं0 21/2001 योजित कर रखी है जो अभी लम्बित है और इसलिए अपीलार्थी/वादी को दावा योजित करने का अधिकार नही है तथा दीवानी न्यायालय को वाद की सुनवाई का अधिकार नही है।
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