21. कभी-कभी शुक्रवाहक किसी निश्चित स्थान में फैल जाते हैं और शुक्राणु जमा करने के लिए शुक्राशय बन जाते हैं। 22. श्रेणी में, जिनमें मनुष्य भी एक है, नर में अंडग्रंथि, शुक्राशय और शिश्न गर्भ को उत्पन्न करनेवाले अंग हैं। 23. यही शुक्रवाहिनी पुनः शुक्राशय ग्रंथि में घूम कर दोनो ओर से लिंग मूल में मूत्रमार्ग में खुल जाती है। 24. कभी-कभी शुक्रवाहक किसी निश्चित स्थान में फैल जाते हैं और शुक्राणु जमा करने के लिए शुक्राशय बन जाते हैं। 25. शुक्राणु तथा शुक्राशय ग्रंथि, पौरुष ग्रंथि तथा मूत्रप्रसेकीय ग्रंथियों से होने वाले स्राव का मिश्रण शुक्र यानी वीर्य है। 26. कभी-कभी शुक्रवाहक किसी निश्चित स्थान में फैल जाते हैं और शुक्राणु जमा करने के लिए शुक्राशय बन जाते हैं। 27. शुक्राशय की रचना-शुक्राशय असलियत में दो थैलियों जैसी रचना है जो शुक्रनाली के नीचे व ऊपर लगी होती हैं।28. शुक्राशय की रचना-शुक्राशय असलियत में दो थैलियों जैसी रचना है जो शुक्रनाली के नीचे व ऊपर लगी होती हैं। 29. अध्यंड में शोथ तथा वृषण रज्जु में शोथ आदि प्रॉस्टेट ग्रंथि तथा शुक्राशय में शोथ, अर्बुद आदि रोग उत्पन्न हो सकते हैं। 30. अध्यंड में शोथ तथा वृषण रज्जु में शोथ आदि प्रॉस्टेट ग्रंथि तथा शुक्राशय में शोथ, अर्बुद आदि रोग उत्पन्न हो सकते हैं।