21. ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक यह बिंदु कांतिवृत्त तथा विषुवत् के संपात में था। 22. इसके अलावा सूर्य और चंद्रमा की अपने पथ पर गति के फलस् वरूप दो संपात बनते हैं। 23. राहू और केतु आकाशीय पिंड नहीं हैं, इसलिए इन दोनो को संपात विंदू कहा गया है। 24. यह बिंदु कर्क रेखा पर 21-22 जून को होता है तथा इसे ग्रीष्म संपात कहते हैं। 25. भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। 26. भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। 27. भारतीय ज्योतिष सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु को ही राशि परिवर्तन का विंदू मानता आया है। 28. राहु और केतु सूर्य व चंद्र की कक्षाओं के संपात बिंदु हैं जिन्हें खगोलशास्त्र में चंद्रपात कहा जाता है। 29. वर्तमान में बसन्त संपात चैत्र में होता है इस कारण चैत्र को संवत्सर को प्रथम माह माना जाता है। 30. भारतीय पंचांग कारों ने संपात बिंदु मेष आरंभ पर तथा उत्तरायण बिंदु मकर आरंभ पर स्थिर मान लिया है।