इस घटना का समाचार देने वाले समाचार पत्रों और टीवी चैनलों ने ‘ किराये की कोख ' को सन्तानहीन दम्पत्तियों के लिए वरदान के रूप में महिमामण्डित किया।
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‘ हे अरुण! जो पूर्वजन्म में गर्भपात करती है, इस जन्म में उस पाप के कारण उसका गर्भ नहीं ठहरता अर्थात् वह सन्तानहीन होती है ।
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नवरात्र व्रत महिमा नवरात्र माहात्म्य वर्णन के प्रसंग में कहा गया है कि जिन्होंने पूर्व जन्म में इस उत्तम नवरात्र व्रत का पालन नहीं किया वे ही दूसरे जन्म में रोगी, दरिद्र और सन्तानहीन होते हैं।
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ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले-” हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है, क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता।
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कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किये जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाये, इनमें तीसरे विदुर भी थे।
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मुझे बता मैं भोले भंडारी से प्रार्थना करूंगा वो तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे तो उसने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और कहा कि संत जी मेरी कोई सन्तान नहीं है और सन्तानहीन स्त्री का जीवन नर्क भोगने के समान होता है।
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वे सन्तानहीन थे, इस कारण उन्होंने अनेक ज्योतिषियों से इसका समाधान कराया और स्वयं भी ज्योतिष शास्त्र का थोड़ा सा अध्ययन कर ज्ञात कर लिया कि जन्म कुण्डली में एक पापग्रह के स्थित होने के कारण इस जीवन में उन्हें सन्तान का मुख देखने का कोई योग नहीं है ।
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रानी सत्यवती के तीन पुत्र थे | व्यास, चित्रांगाद और विचित्रवीर्य | व्यास के अलावा दोनों पुत्र शादीशुदा थे और उनकी रानियां काफी सुन्दर रूपवती थीं | लेकिन संयोग से दोनों ही शीघ्र मर गए | उनकी दोनों रानियां अम्बा और अम्बिका विधवा हो गईं | वह सुन्दर तथा रूपवती सन्तानहीन थीं | राजसिंघासन तथा वंश चलाने के लिए संतान की आवश्यकता थी |
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ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
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ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, “हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथा हो रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?” कुन्ती बोली, “हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ।
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