21. विदूषी मोहतरमा जी! चाटुकारिता दो प्रकार की होती है एक निष्प्रयोजन और दूसरी सप्रयोजन . 22. और उसके सप्रयोजन ज्ञात होने पर उसका अनुसरण करना, ‘ सप्रयोजन परम्परा ' कहलाती है । 23. और उसके सप्रयोजन ज्ञात होने पर उसका अनुसरण करना, ‘ सप्रयोजन परम्परा ' कहलाती है । 24. उसकी स्वतंत्रता उसकी सर्वनिरपेक्षता है न कि स्वंतत्र इच्छा इसी से स्पिनोज़ा सृष्टि को सप्रयोजन नहीं मानता। 25. हमारे लिए उन सिद्धांतों से प्राप्य प्रतिलाभ का उपयोग कर लेना, सप्रयोजन परम्परा का निर्वाह है। 26. तितली को प्यूपा से निकल ने के लिए जो मशक्कत करनी पड़ती है वह प्रकृति नियत सप्रयोजन है। 27. ऐसी क्रिया-प्रणाली, प्रयोजन सिद्ध होने के कारण, हम इसे ‘ सप्रयोजन परम्परा ' कह सकते है। 28. तितली को प्यूपा से निकल ने के लिए जो मशक्कत करनी पड़ती है वह प्रकृति नियत सप्रयोजन है। 29. निष्प्रयोजन परम्परा: रूढ़ि पि छले लेख में हमने सप्रयोजन परम्परा के औचित्य को स्थापित करने का प्रयास किया। 30. इतिहास के ग्रंथ में कोई काल्पनिक कहानी नहीं जोड सकता, लेकिन पुराणों में ऐसा सप्रयोजन किया जाता है।