अशांत को शांति देना, निगुरे को सगुरा बनाना, अभक्त को भक्ति की तरफ ले जाना भी यज्ञ है और अपनी जो भी सूझबूझ है उसे परहित के लिए खर्चना यह यज्ञ, दान और तप है।
32.
भूखे को रोटी देना, प्यासे को जल पिलाना, हारे हुए, थके हुए को स्नेह के साथ सहाय करना, भूले हुए को मार्ग दिखाना, अशिक्षित को शिक्षा देना और अभक्त को भक्त बनाना चाहिए।
33.
******* भक्त वह है जो तन से कर्तव्य-कर्म करता है और मन, वाणी से निरन्तर भगवान का स्मरण करता है, अभक्त वह है जो वाणी से तो भगवान का नाम जपता है और मन से दूसरों का बुरा चाहता है।
34.
' यह बात सुनने में अटपटी लग सकती है की समदर्शी प्रभु भी पक्षपाती है, क्योंकि वे भक्त के साथ सम प्रेम का व्यवहार करते हैं और अभक्त के साथ विषम अर्थात क्रोध का व्यवहार करते हैं, परन्तु ऐसा नहीं है ।
35.
च नाशुश्रूषवे वाच्यं न मां योऽभ्यसूयति॥-गीता ' ' तपस्या-विहीन, अभक्त या जिसको अभी तक इन बातों के सुनने की तीव्र इच्छा न हुई और जो गुरु-सेवा परायण न हो या जो मुझसे (ईश्वर) से असूया रखता हो, ऐसे व्यक्ति से बातें न कहनी चाहिए । ''
36.
न्यायनिष्ठ जज को जिस प्रकार अपने सगे संबंधियों, प्रशंसक मित्रों तक को कठोर दंड देना पड़ता है, फाँसी एवं कोड़े लगाने की सजा देने को विवश होना पड़ता है, वैसे ही ईश्वर को भी अपने भक्त-अभक्त का, प्रशंसक-निंदक का भेद किए बिना उसके शुभ-अशुभ कर्मों का दंड पुरस्कार देना होता है।
37.
पर्ातः स्मरणीय परम पूज्य संत शर्ी आसारामजी बापू के सत्संग पर्वचन भगवन्नाम जप-मिहमा िनवेदन भगवान का पावन नाम क्या नहीं कर सकता? भगवान का मंगलकारी नाम दुःिखयों का दुःख िमटा सकता है, रोिगयों के रोग िमटा सकता है, पािपयों के पाप हर लेता है, अभक्त को भक्त बना सकता है, मुदर्े मंे पर्ाणों का संचार कर सकता है।
38.
(सूतजी का उपदेश श्री शिव महापुराण वायवीय संहिता उत्तर भाग अध्याय ४ ० पृष्ठ ९ ६ ०-९ ६ १) सद्गुरू के मुख से इस २ ४ ६ ७ २ श्लोक वाले शिव महापुराण को एक बार सुनने मात्र से सम्पूर्ण पाप भस्म हो जाते है, जो अभक्त है, उसे शिव भक्ति मिल जाती है और जो भक्त है उनकी प्रभु शिवजी के चरणों में दृढ़ भक्ति हो जाती है।
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ब्लॉग कथामृत का श्रवण चल रहा है-भक्त श्रोता भाव विभोर हो रहे हैं, अभक्त विभक्त हो रहे हैं, हम हकबकाए देख रहे हैं की किस ओर का पाला थामें-यह लगता है पितृपक्ष से आगे भी चलता जायेगा-यह ब्लॉग युग कीकथा है इसकी तर्पण तिथि लाजिमी है कोई दूसरी ही होगी-ये सोंटाधारी जिसकी सिद्धार्थ भी अर्थार्थ निकाल चुके हैं व्याकरण की लिहाज से किस लिंग के हैं-यह एक लघु शंका है!
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