पिछले 2 सालों में पेट्रोल और डीजल कीमतों के अलावा सब्जियों, फलों जैसी आम उपभोग की चीजों में लगातार बढ़ोतरी ही होती आई है जिसने कॉमन मैन की बजट के बिगाड़ कर रख दिया है।
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गौरतलब है कि इधर राजग के घटक दल सड़कों पर उतर कर आम उपभोग की कीमतों में आई बेतहाशा वृध्दि का विरोध कर रहे थे उधर, महंगाई की दर ने पिछले 42 महीनों का रिकार्ड तोड़ दिया।
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सकल घरेलू उत्पाद बढ़ते रहने के कारण आम उपभोग की किसी वस्तु के दाम बढ़ना स्वाभाविक है, क्योंकि तेज विकास के साथ मुद्रास्फीति बढ़ती है, लेकिन सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि खाद्य पदार्थो की महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है।
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मैं न तो बीजेपी का समथॅक हूं न ही एनडीए का सिपहसालार, और न ही कांग्रेस या यूपीए का विरोधी, लेकिन वाजपेयी सरकार और मनमोहन सरकार के दौरान आम उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में जो उछाल आया है, उससे कैसे आंखें मूंद लूं।
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ऐसा उन देशों की स्त्रियों के साथ भी होता है जो बुर्के और पर्दों में रहती हैं, वहां भी जहां उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है और उन देशों में भी होता है, जहां आज़ादी की हर किस्म का औरतें खुले आम उपभोग करती हैं।
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उन्होंने कहा कि पिछली बार जब आम उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई थी तो सभी राज्यों को दिशा-निर्देश दिया गया था कि वह जमाखोरी और कालाबाजारी पर कड़ी निगरानी रखें और जरूरत पड़े तो कड़े नियम भी बनाए, लेकिन भाजपा शासित किसी भी राज्य ने ऐसा नहीं किया।
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मांग में कमी होने के परिणाम स्वरूप इकाई कीमतों में औरवृद्धि होने के कारण तथा कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप आम उपभोग केकाम आने वाली कई औद्यो-~ गिक वस्तुओं की मांग में और कमी आने के कारण, आर्थिक तथा राजनीतिक खलबली और बढ़ जाएगी तथा स्फीति एवं गिरते हुएउत्पादन की स्थितियां एक साथ उभर कर सामने आएंगी.
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एक बार सत्ता हासिल करने के बाद मज़दूर वर्ग को एक आधुनिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली का निर्माण करना होगा जो यह सुनिश्चित करेगी कि आम उपभोग की सभी जरूरी वस्तुयें-खाद्यान्न, खाने का तेल, दालें, तरकारियां आदि-पर्याप्त मात्रा, अच्छी गुणवत्ता तथा मेहनतकश लोगों के लिये उपयुक्त कीमतों में उपलब्ध हों।
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स्थायी रोजगार रोजी की जगह बढती आशिक अर्ध या पूर्ण बेरोजगारी के साथ आम उपभोग के सामानों की मंहगाई को निरन्तर बढाने का काम करती रही है | ऐसी स्थितियों को सुनियोजित ढंग से बढाये जाने के फलस्वरूप उसे देश के गरीबो में, साधारण मजदूरों, किसानो, दस्तकारो, आदिवासियों एवं अन्य छोटे-मोटे कामो पेशो में लगे लोगो के बच्चो में बढ़ते कुपोषण पर देश की सरकारों को शर्म आखिर क्यों आनी चाहिए? और क्यों आएगी? एक दम नही आएगी |
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