काबा शरीफ़ का तवाफ़ (परिक्रमा) अल्लाह के एकेश्वरत्व का प्रदर्शन है जब मुसलमान मक्का की मस्जिदे हराम में जाते हैं, वे काबा का तवाफ़ करते हैं अथवा उसके गिर्द चक्कर लगाकर परिक्रमा करते हैं तो उनका यह कृत्य एक मात्र अल्लह पर विश्वास और उसी की उपासना का प्रतीक है क्योंकि जिस प्रकार किसी वृत्त (दायरे) का केंद्र बिन्दु एक ही होता है उसी प्रकार अल्लाह भी एकमात्र है जो उपासना के योग्य है।
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वेद ही स्पष्ट रूप से कहते हैं की जिसका कभी नाश नहीं होता, जो सदा ज्ञान स्वरुप हैं, जिसको अज्ञान का कभी लेश नहीं होता, आनंद जो सदा सुखस्वरूप और सब को सुख देने वाला हैं, जो सब जगह पर परिपूर्ण हो रहा हैं, जो सब मनुष्यों को उपासना के योग्य इष्टदेव और सब सामर्थ्य से युक्त हैं, उसी परब्रह्मा से उसी पर ब्रह्मा से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, यह चारों वेद उत्पन्न हुए हैं.
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जो सब जगत् का कर्त्ता, सर्वशक् तिमान् सबका इष्ट, सबको उपासना के योग्य, सब का धारण करने वाला, सबमें व्यापक और सबका कारण है, जिसका आदि अन्त नहीं, और जो सच्चिदानन्दस्वरूप है, जिस का जन्म कभी नहीं होता, और जो कभी अन्याय नही करता, इत्यादि विशेषणों से वेदादि शास्त्रों में जिसका प्रतिपादन किया है, उसी को इष्टदेव मानना चाहिये और जो कोई इससे भिन्न को इष्टदेव मानता है, उसको अनार्य्य अर्थात् अनाड़ी कहना चाहिये | क्योंकि-
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