थोड़ा विस्तार से भावार्थ समझें-‘‘ सर्वव्यापी अनन्तचेतन में एकीभाव से स्थितिरूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सबमें सम भाव से देखने वाला योगी आत्मा को संपूर्ण भूतों में स्थित और सभी भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है।
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भावार्थ: जिनका मन तद्रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तद्रूप हो रही है और सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही जिनकी निरंतर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति को अर्थात परमगति को प्राप्त होते हैं॥17॥
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ऐसा होता है “ आदित्य ” के समान ज्ञान द्वारा अपने अंदर बैठे परमात्मा को प्रकाशित करने के बाद हमारा मन ध्यान हेतु तद्रूप हो, बुद्धि तद्रूप हो तथा हम सच्चिदानंद घन परमात्मा में ही एकीभाव से स्थित हों।
34.
भावार्थ: जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है॥24॥
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' योगी इस सम्बन्ध में कहते हैं कि जिसने न्यूनाधिक रूप से परमात्मा के साथ एकीभाव प्राप्त कर लिया है अथवा जिसका लक्ष्य है परमात्मा के साथ एकात्मभाव को प्राप्त करना और जो इस प्रकार के एकात्मभाव में विश्वास करता है।
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‘ अर्थात् सबके कल्याण में लगे हुए, इन्द्रिय समूह को वश में करके, तथा सभी के प्रति समभाव रखते हुए, जो एकीभाव से ध्यानपूर्वक भजते हैं, वे योगी मुझे ही (सच्चिदानन्द परमात्मा को) प्राप्त करते हैं।
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भावार्थ है-‘‘ जिसका मन भलीप्रकार शान्त है, जिसका रजोगुण दूर हो गया है, सभी प्रकार के पापों से जिसने पल्ला छुड़ा लिया है ऐसे इस सच्चिदानन्द घन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को निश्चित ही परमानन्द की प्राप्ति होती है।
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भावार्थ: जिनका मन तद्रूप हो रहा है, जिनकी बुद्धि तद्रूप हो रही है और सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही जिनकी निरंतर एकीभाव से स्थिति है, ऐसे तत्परायण पुरुष ज्ञान द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति को अर्थात परमगति को प्राप्त होते हैं॥ 17 ॥
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भावार्थ: जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करने वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्य योगी शांत ब्रह्म को प्राप्त होता है॥ 24 ॥
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परन्तु हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह अभ्यास अर्थात् एकीभाव में नित्य स्थिति के लिए बारंबार यत्न करने से और वैराग्य से वश में होता है |' (गीताः 6.35) जो लोग केवल वैराग्य का ही सहारा लेते है, वे मानसिक उन्माद के शिकार हो जाते हैं ।
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