विधिविवेक में मंडन ने तथा न्याय निर्णय में वाचस्पति ने जो विवेचन किया है, वह सिर्फ़ ' वेदवाक्यों का अर्थ ' या ' वैदिक कर्मकांड ' के संदर्भ में ही महत्त्व नहीं रखता, बल्कि उसका सम्बन्ध अधिनैतिक प्रश्नों से भी है।
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अश्लीलता के संबंध में भारत के न्यायालयों में चल रहे व निर्णित वादों एवं वर्तमान परिवेश में इस संबंध में चल रहे अटकलों एवं समाज में व्याप्त चिंतन पर स्पष्ट प्रकाश डालने में यह न्याय निर्णय अगले कुछ बरसो तक सक्षम साबित होगा.
33.
इस स्थिति में निगरानीकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत मान्नीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद का उपरोक्त न्याय निर्णय इस मामले की परिस्थितियों में लागू होता है तथा परगना मजिस्टेट धारचूला द्वारा निगरानीकर्ता को दिया गया नोटिस त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है जो निरस्त होने योग्य है।
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जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर विभिन्न न्याय निर्णय में यह अवधारित किया गया है कि एक अकुशल श्रमिक भी सामान्यतः 100. 00 रूपये प्रतिदिन कमा लेता है, ऐसी परिस्थिति में मृतका की मासिक आय 3,000-00 रूपये अवधारित की जाती है।
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उक्त न्याय निर्णय में भी माननीय उच्च न्यायालय की यही मंशा है कि आदेश-7 नियम-11 सी0पी0सी0 के अन्तर्गत वादपत्र को प्रारम्भ की स्थिति में ही निरस्त कर देना चाहिए ताकि प्रतिवादी को अनावश्यक रूप से ऐसे वाद को लड़ना न पड़े, मगर इस मामले की परिस्थितियां भिन्न हैं।
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इस प्रकार इस सम्बन्ध में मान्नीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड द्वारा पारित निर्णय के पश्चात इस सम्बन्ध में इस न्यायालय द्वारा इन तथ्यों पर पुनः विश्लेषण किये जाने का कोई औचित्य नहीं है तथा अपीलार्थीगण की ओर से प्रस्तुत उपरोक्त न्याय निर्णय इस वाद की परिस्थितियों में लागू नहीं होते है।
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इसलिए ऐसी स्थिति में जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर अपने विभिन्न न्याय निर्णय में यह अवधारित किया गया है कि एक अकुशल श्रमिक भी सामान्यतः 100. 00 रूपये प्रतिदिन कमा लेता है, ऐसी परिस्थिति में मैं मृतक की आय प्रकल्पित आय माना जाना न्यायोचित समझता हूं।
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ऐसी स्थिति में विचारण न्यायालय ने कोई भी त्रुटि साक्षी श्रीमती बन्दुली देवी व आवश्यक संबंधित दस्तावेज नकल जी0डी0 आदि को तलब करने में कोई वैधानिक त्रुटि व तथ्यों की भूल नहीं की है, क्योंकि उचित न्याय निर्णय हेतु धारा-311 दं0प्र0सं0 के तहत किसी भी साक्षी को किसी समय न्यायालय उचित न्याय निर्णय हेतु तलब कर सकता है।
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ऐसी स्थिति में विचारण न्यायालय ने कोई भी त्रुटि साक्षी श्रीमती बन्दुली देवी व आवश्यक संबंधित दस्तावेज नकल जी0डी0 आदि को तलब करने में कोई वैधानिक त्रुटि व तथ्यों की भूल नहीं की है, क्योंकि उचित न्याय निर्णय हेतु धारा-311 दं0प्र0सं0 के तहत किसी भी साक्षी को किसी समय न्यायालय उचित न्याय निर्णय हेतु तलब कर सकता है।
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जहां तक निगरानीकर्ता द्वारा माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड द्वारा पारित न्याय निर्णय 2009 (1) यू0ए0डी0 602 मैसर्स मनू महारानी होटल्स लिमिटेड बनाम ठाकुर दान सिंह बिष्ट ट्रस्ट व अन्य में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि ‘‘ यदिं आदेश-7 नियम-11 सी0पी0सी0 में दी गयी शर्तों में से एक भी विद्यमान पायी जाये तो न्यायालय वादपत्र को अस्वीकार करने के लिए बाध्य है।
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