31. ऐसे लोगों का जीवन पशुवत् पाप रूप, निकृष्ट प्रकार का हो जाता है । 32. आध्यात्मिक धरातल छूट जाने के कारण शिक्षित लोग पशुवत् (आहार-निद्रा-भय-मैथुन) ही जी पाते हैं। 33. आदि से अंत तक मनुष्यों को पशु समझना और उनसे पशुवत् व्यवहार करना इसका मूल सिध्दांत है। 34. कालान् तर के पृष् ठ हमारे लिए क् या पशुवत् जीवन गुजारते मानव की परिभाषा गढ़ रहे हैं। 35. पशुवत् उन्मत्त आवेग, जो आंखों से नहीं दीखता, वह उसके मन का परिचय पा ही नहीं सकता।36. सारांश यह कि दोनों स्त्रियॉँ अपने अधिकारों से बेखबर, अंधकार में पड़ी हुई पशुवत् जीवन व्यतीत करती थीं। 37. मनुष्य होते हुए भी पशुवत् जीवन जीने वाला यह तुच्छ प्राणी क्या आपकी करूणा का पात्र नहीं है? 38. सारांश यह कि दोनों जनी अपने अधिकारों से बेखबर, अंधकार में पड़ी हुई पशुवत् जीवन व्यतीत करती थीं। 39. उस देव-भूमि के एक भाग यमुना घाटी (रवाईं) में रहने वाले साधारण मनुष्यों-रवांल्टों-को पशुवत् , नारकीय जीवन बिताना पड़ता था। 40. किसी मनुश्य का अगर ऐसा स्वभाव होता है तो उसे हम या तो पशुवत् कहते हैं या राक्षस की उपमा देते हैं।