31. झिल्ली के फटने से उसमें एक छोटा सा छिद्र बन जाता है, जिससे पूय बहने लगती है। 32. पैत्तिक उपदंश में शीघ्र ही पीला पूय पड़ जाता है और उसमें क्लेद, दाह एवं लालिमा रहती है। 33. सपूय बलगम गाढ़ा या पतला पूय का बना होता है तथा पीला या हरा-पीला रंग का होता है। 34. सपूय बलगम गाढ़ा या पतला पूय का बना होता है तथा पीला या हरा-पीला रंग का होता है। 35. सपूय बलगम गाढ़ा या पतला पूय का बना होता है तथा पीले या हरे रंग का होता है। 36. मध्य कर्ण में उत्पन्न पूय को निकलने का रास्ता न मिलने के कारण वह कर्णपटह में विदार कर देती है। 37. मध्य कर्ण में उत्पन्न पूय को निकलने का रास्ता न मिलने के कारण वह कर्णपटह में विदार कर देती है। 38. इसके विपरीत ज्वर का कम होना, नाड़ी कीगति साधारण होना, विद्रधि का बैठना तथा पूय निकलना रोगयुक्त होने का लक्षण हैं. 39. पूय श्री भदरेशदास स्वामी के प्रवचनों को संगत ने बड़े प्रेम से सुना और बाप्स के सम्मानीय स्वामी के विचारों से अवगत हुए।40. कहते हैं, पीड़ा, दबाने से पीड़ा का बढ़ना, शोथ, 102रू से 104रू फा. तक ज्वर और कान से पूय का निकलते रहना हैं।