31. इसमें शिव की प्रत्यभिज्ञा के द्वारा ही ज्ञान प्राप्ति को कहा गया है। 32. दूर करो धरती की जड़ता अरु तपन॥ करें हम प्रत्यभिज्ञा शक्तियाँ असीमित, 33. ये काश्मीर शैवमत की प्रत्यभिज्ञा शाखा के प्रवर्तक सोमानंद के पुत्र तथा शिष्य थे। 34. प्रत्यभिज्ञा दर्शन का कहना है कि ऐसा प्रकाश जिसे अपना ज्ञान है विमर्शमय है।35. प्रत्यभिज्ञा दर्शन का कहना है कि ऐसा प्रकाश जिसे अपना ज्ञान है विमर्शमय है।36. मानते हैं कि प्रत्यभिज्ञा का उदय स्मृति से होता है, संस्कार या वासना से 37. ये कविताएँ तर्क और विवेक से ज्यादा चैतन्य और दार्शनिक प्रत्यभिज्ञा से उद्भूत हैं। 38. इनके पुत्र तथा शिष्य लक्ष्मणपुत्र अभिनवगुप्त के प्रत्यभिज्ञा तथा क्रमदर्शन के महामहिम गुरु थे। 39. ये कविताएँ तर्क और विवेक से ज्यादा चैतन्य और दार्शनिक प्रत्यभिज्ञा से उद्भूत हैं। 40. प्रत्यभिज्ञा दर्शन-इसे ' प्रत्यभिज्ञा दर्शन' इसलिये कहते हैं कि यह मानता अद्वैत ही है।