31. फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है। 32. शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति शरीर, मन और वाणी से प्रभु की सेवा करता है वो भौतिक अवस्था में भी मुक्त समझा जाता है। 33. फलत: इन पिंडों के आंतरिक भागों की रचना तथा भौतिक अवस्था के विषय में जानने के लिये वर्णक्रमिकी से भिन्न साधनों की आवश्यकता है। 34. दरअसल, इसमें एक खास प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से रूपांतरण लाया जाता है, जो इसे वर्षा के अनुकूल बनाता है. 35. यह इसलिए कि वर्णक्रमदर्शी पदार्थ की भौतिक अवस्था के विषय में तभी सूचना दे सकता है जब यह पदार्थ दीप्तिमान गैस के रूप में हो। 36. यह इसलिए कि वर्णक्रमदर्शी पदार्थ की भौतिक अवस्था के विषय में तभी सूचना दे सकता है जब यह पदार्थ दीप्तिमान गैस के रूप में हो। 37. यह इसलिए कि वर्णक्रमदर्शी पदार्थ की भौतिक अवस्था के विषय में तभी सूचना दे सकता है जब यह पदार्थ दीप्तिमान गैस के रूप में हो। 38. अत: इस साधन से यह नहीं जाना जा सकेगा कि प्रकाश के पथ में स्थित पिंडखंड किन पदार्थों के बने हुए हैं तथा उनकी भौतिक अवस्था क्या है। 39. यह तो स्पष्ट है कि किसी भी क्रिया में क्षेपित उष्मा की मात्रा उसमें भाग लेनेवाले पदार्थों की भौतिक अवस्था पर निर्भर रहेगी; इसीलिए भी लिख जाती है। 40. अत: इस साधन से यह नहीं जाना जा सकेगा कि प्रकाश के पथ में स्थित पिंडखंड किन पदार्थों के बने हुए हैं तथा उनकी भौतिक अवस्था क्या है।