31. सामान्य तबले को मन्द्र सप्तक के मध्यम से लेकर मध्य सप्तक के पंचमतक मिला लिया जाता है. 32. घाटियों में भरती गिरती चट्टानों की गूंज-काँपती मन्द्र -अनुगूँज-साँस खोयी-सी, धीरे-धीरे नीरव। 33. मन्द्र वायलिन, वायलिनचैलो, वास वायलिन, एक प्रकार की बेला जो घेरे में दबा कर बजायी जाती है34. प्रायः यह देखा गया है कि नौसिखिया बाँसुरी-वादक जोकिआधुनिक मन्द्र पंचम है वहीं से षड्ज मानकर बजाते हैं. 35. घाटियों में भरती गिरती चट्टानों की गूंज-काँपती मन्द्र -अनुगूँज-साँस खोयी-सी, धीरे-धीरे नीरव। 36. वायु नाभि से उठकर उर स्थान से टकराकर मुख से निकलता है, तब मन्द्र स्वर निकलता है (प्रात: 37. सुर कभी भी बेसुरे नहीं होते चाहत जिसे हो मन्द्र की तार सप्तक के स्वर शोर सा करते लगते हैं.... 38. सुर कभी भी बेसुरे नहीं होते चाहत जिसे हो मन्द्र की तार सप्तक के स्वर शोर सा करते लगते हैं.... 39. परन्तु धीरे-धीरे मन्द्र और अतिमन्द्र स्वरों में गायन का चलन कम होता गया और आधुनिक सारंगी से चौथा तार हट गया। 40. स्वर के ऊपर बिन्दु तार सप्तक, स्वर के नीचे बिन्दु मन्द्र सप्तक और बिन्दु रहित स्वर मध्य सप्तक दर्शाते हैं।